आगम और धूप दीप पूजा आरती


 

यदि हम शक्ति पूजा का मूल देखें, तो वह अग्नि में है। तंत्र मूलतः उपासना के नियम बताता है, जो अग्नि का चिंतन, अर्थात् अग्नि का नाम लेना है, जो धूप, दीप, आरती और हंमा के माध्यम से पूर्ण होता है। तंत्र की मूल प्रवृत्ति सग्नि प्रवृत्ति में है, किन्तु यद्यपि हंमा प्रवृत्ति उतनी स्पष्ट नहीं है, फिर भी आगम धूप-दीप में पूजित देवता की आराधना और आरती विधि से उनके प्रति समर्पण करने को कहा गया है। जब से तंत्र ने यज्ञ प्रवृत्ति को मुख्यतः तंत्र या मिश्रित आगम के रूप में कहना शुरू किया, तब से होम का महत्व बढ़ता गया है। किन्तु आजम की मूल प्रवृत्ति उपचार, अर्थात् पूजा और आरती अर्पण करने की है। दशांग होम, जो दक्षिण भारत में प्रचलित है, इसी नामाग्नि पूजा की एक विधि है, जिसे वाराणसी और विंध्याचल क्षेत्र में धूनी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। परन्तु तंत्र की मूल धारा आरात्रिक पूजा है, अर्थात् धूप-दीप की अग्नि में अपने इष्ट का चिंतन कर, उस अग्नि शक्ति से इष्ट शक्ति की आराधना करना। अतः हमारे नित्य धूप-दीप की अग्नि वही है, जिसे हम स्थूल मूर्ति में देखते हैं, अर्थात् उसका प्रकाश रूप। मूल शक्ति अग्नि रूप में तथा इष्ट आरात्रिक रूप में अपनी शक्ति द्वारा ही दिखाई देते हैं। इसीलिए मैं के माध्यम से धूप-दीप को इतना महत्व दिया गया है। अर्थात् जिस प्रकार सर्वव्यापी अग्नि अर्थात यज्ञ की अग्नि को महत्व दिया गया है, उसी प्रकार आरात्रिक में नामाग्नि के रूप में धूप-दीप की आहुति को प्राथमिकता दी गई है। तंत्र पूजा मूलतः मन की अग्नि और प्राण वायु पर आधारित है, जिसका बाह्य रूप धूप-दीप की पूजा है।

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