आरती क्या है और किस तरह इसे करे [ Aarti & Process ]


आरती को संस्कृत में 'आरात्रिक' कहा गया है| जो रात्रि के अंधकार को ख़तम करता है| कई जगह पर इसे 'नीराजन' नाम से भी बताया गया है| तमिल भाषा में इसे दीप और धुप आराधनाई के नाम से बताया गया है| आरती को संपूर्ण पूजा कहा गया है| अगर आप किसी भी प्रकार के कोई विशेष आयोजन अपने पूजा में न कर पाए फिर भी सिर्फ आरती से ही आप अपने पूजा को सम्पन्न कर सकते हैं, इसलिए आरती को छोटी सम्पूर्ण पूजा कहा जाता है| आरती मूल रूप से पांच चीजों से कि जाती है जैसे धुप, दीप, जलपूर्ण शंख, वस्त्र और फूल तथा आम या पीपल के पत्तों से| इसे पंच आरती कहते हैं क्यों कि यह पांच बस्तुओ के माध्यम से किया जाता है| कुछ जगह पर सप्त आरती करने कि भी प्रचलन है अर्थ्यात सात चीजों से आरती किया जाता है जेसे कर्पुर, चामर इत्यादि से भी| पर हम ज्यादातर जो आरती घर में करते हैं रोज पूजा के समय उसे धुप दीप आरती कहते हैं| धुप और दीप देवी देवता के सामने दिखाना यानि आरती करना ही ज्यादा प्रचलित आरती है| पंच और सप्त आरती मूल रूप से उत्सव या मंदिरों में ही ज्यादा किए जाते हैं| कुछ परिवार अपने पारम्पारिक नियम के अनुसरण करते हुए भी घर पे पंच आरती करते हैं|

आरती दिन में 5 बार करने कि चलन देखा जाता है| एक सुबह मंगल आरती, दूसरा दिन में पूजा संपन्न होने पर पूजाआरती, दोपहर को भोग के समय भोग आरती, संध्या के समय संध्यारती, रात में शयन आरती| हम अक्सर देखते हैं कि हम दिनमे ज्यादातर दो -बार की आरती प्रधानत करते हैं एक पूजा आरती और एक संध्या आरती| आजकल हमारे भाग दौड़ के जीवनशैली में घर में पूजा में हम इन दो समय के आरती को ही कर पाते हैं| पर किसी विशेष पूजा में जेसे दिवाली या दुसरे समय हम पंच या सप्त आरती करने की कोशिश जरुर करते हैं|

आरती के लिए सबसे पहेले तो आरती में इस्तेमाल हुए बस्तुओं को निवेदन करना होता है| इसे आप मंत के द्वारा भी कर सकते हैं या फिर जल, पुष्प , अक्षत से भी| कुछ जगह पे धूप से ही आरती शुरू की जाती है पर कुछ जगह पंचप्रदीप जलाकर ही आरती शुरू की जाती है| धूप से आरती शुरू करने के बाद एक के कर दीप, जलपूर्ण शंख, वस्त्र और पुष्प दिखाया जाता है| आरती के समाप्ति पर प्रणिपात यानि प्रणाम करना बहुत ही जरुरी है| प्रणाम करना आरती का ही एक अंग होता है और अंत में प्रणाम ना करने से आरती संपन्न नहीं होती है| आरती में हर चीज घुमाने का भी तरीका है जैसे की मूर्ति की चरण में 4 बार, नाभिदेश में 2 बार, मुखमंडल पर 3 बार और सरे अंगो में ऊपर से नीचे तक 7 बार अर्थ्यात पुरे 16 बार आरती प्रदर्शित करना होता है पर अगर कोई इस तरह से न कर पाए और कमसे कम पूरी 16 बार ऊपर से निचेतक आरती बस्तुओं को घुमे तो भी कोई समस्या नहीं है क्यों बहुत से समय आरती करते करते गिनना आसान नहीं होता| आरती करते समय अगर कोई मग्न होकर आरती करे तभी वह वक्ति आरती के आनन्द को महसूस करने में सफल होगा| आरती करते समय मनको एकाग्र करना बहुत जरुरी है क्यों कि आरती मन को एकाग्र केन्द्रित करने का ही एक तरीका है|

घर पे आरती करते समय धूप और दीप को जलना चाहिये और फिर उसे जिनकी आरती कर रहे हैं उन्हें निवेदन करना चाहिये और फिर बहुत ही शांत और सही तरह से आरती करना चाहिये| आरती के बाद पुरे घर में आरती के धूप दिखाना भी सही होता है इससे नकार्त्मकता कई हद तक कम हो जाती है खास कर जो बच्चे पड़ी लिखी करते हैं धूप की अरोमा उन्हें मन को एकाग्र करने में मदत करता है| कह जाता है की आरती ध्यान की तरह ही अगर हम रोज अभ्यास करे तो यह हमारे मन को संयम करने में और किसी भी काम को एकाग्रता के साथ करने में मदत करता है|


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