संध्या वंदन और धूप-दीप आरती [ Evening Invocation and Aarti ]

संध्या वंदन आरती के बारे में जानने से पहले आइये जान लेते हैं संध्या के विषय में कुछ बातें| संध्या मुख्यत दिन के तीन समय को कहते हैं, जैसे सुबह या ब्रह्म मुहूर्त का समय, दोपहर यानि मध्यान्ह का समय और साम यानि साँझ का समय| इन तीन समय में ही ईश्वर के आरती आराधना का समय बताया गया हैं| प्रभाती आरती, मध्यान्ह आरती और संध्या आरती जिसके प्रतीक हैं| जगह जगह पर संध्या वंदन करने की प्रथा अलग अलग से हैं आरती उसके सांसे सरल और सहज माध्यम हैं जो कोई भी कर सकता हैं| इसके लिए कोई विशेष मंत्र या जानकारी की जरुरत नहीं होती है, नाम कीर्तन या फिर आराध्य के जयकार  के साथ ही यह किया जा सकता है| प्राचीन समय से ही दिन के इस तीन समय पर आरती आराधना करने की परंपरा है|


जैसे की पहले ही बताय गया है कि संध्या करने की प्रथा अगल अगल होती है उसी तरह हर अलग अलग आराध्य के संध्या या आरती करके नियम भी भिन्न भिन्न हो सकते हैं| संध्या के लिए विशेष पूजा की हर समय जरुरत नहीं होती है बस आचमनी से ही यह कार्य किया जा सकता है और साथ में धूप-डीप से आरती| ताम्बे की आचमनी से जल लेकर आचमन करके आराध्य को पुष्पांजलि प्रदान करने के बाद धूप और दीप निवेदन  करके आरती की जाती है| कुछ जगह पारंपारिक तौर पे वैदिक संध्या करने की प्रथा है पर जो मंत्रहिन् पूजा या संध्या करना चाहते हैं वो आरती करके भी अपने संध्या वंदन या मंगलाचरण को पूरी कर सकते हैं| कहते हैं किसी भी क्रिया अगर करना सम्भब न हो या भी मन्त्र ज्ञात न हो तो आरती सबसे सहज और सरल प्रक्रिया होती हैं उस पूजा को सम्पूर्ण बनाने के लिए| किसी पूजा में अगर सम्पूर्ण या संक्षिप्त आरती भी की जाये तो वो सम्पूर्ण पूजा मणि जाती है और यह आप किसी अपने आप ही कर सकते हैं किसी के सहायता या दीक्षित होना आवश्यक नहीं है| आराध्य के प्रति प्रेमभक्ति होना जरुरी है बस|

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