पुरी के जगन्नाथ क्षेत्र और आरती [ Puri temple & Jagannath Aarti ]
ओडिशा राज्य के पुरी में भगवान जगन्नाथ का पवित्र धाम है, जिसे पुराणों में धरती का बैकुण्ठ कहा गया है। यह धाम हिंदू धर्म के चार धाम में से एक है। इसे नीलांचल धाम भी कहा जाता है। यहां भगवान
श्री जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपने भक्तों को दर्शन देटी है| पूरी क्षेत्र का यह मंदिर करीब 1200 साल पुराना है। हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा मनाई जाती है| कहते हैं कि प्रभु जगन्नाथ इस दिन पुरे नगर में भ्रमण करके अपने प्रजा से मिलते हैं जिससे नगरवासिओं को भी प्रभुसे साक्षात मिलने का मौका मिल जाता है|
मंदिर की रसोई घर में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं| यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी के चूल्हे पर ही पकाया जाता है| इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है| मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता साथ ही मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है| मान्यता है कि माता लक्ष्मी रोज खुद इस रसोई घर में श्री जगन्नाथ के लिए भोजन बनाते हैं| मन्दिर की रसोई में एक विशेष कक्ष रखा जाता है, जहां पर महाप्रसाद तैयार किया जाता है। इस महाप्रसाद में अरहर की दाल, अरवा चावल, साग, दही व खीर जैसे व्यंजन होते हैं। इसका एक भाग प्रभु का समर्पित करने के लिए रखा जाता है तथा इसे कदली पत्रों पर रखकर भक्त गणों को बहुत कम दाम में बेच दिया जाता है। मंदिर प्रांगण में ही विमला देवी शक्ति पीठ है। यह शक्ति पीठ बहुत प्राचीन मानी जाती है। शक्ति स्वरूपिणी मां विमला देवी भगवान श्री जगन्नाथ जी के लिए बनाए गए नैवेद्य को पहले चखती हैं फिर वह भोग के लिए चढ़ाया जाता है| कहाँ जाता है कि जगन्नाथ पूरी पहले माँ विमला देबि का ही निवास हुआ करता था पर जिसमें उन्होंने श्री जगन्नाथ को बसने कि अनुमति दी| इसलिए आज भी शारदीय नवरात्रि में शक्ति पूजा कि विधि विधान से माँ विमला देवी कि पूजा होती हैं|
काष्ठ से बनी जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं को बदलने की परंपरा भी है| जिस वर्ष अधिमास रूप में आषाढ़ माह अतिरिक्त होता है उस वर्ष भगवान की नई मूर्तियां बनाई जाती हैं| यह अवसर भी पूरी में उत्सव के रूप में ही मनाया जाता है|
सुबह सबसे पहले मंगल आरती से श्री जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के दिनचर्या शुरू होती है| इक्कीस दियें से आरती की जाती है साथ ही धूप और पिष्टक आरती भी की जाती है| इसके बाद तीनों देवी देवता के दन्त मार्जन किया जाता है और फिर उन्हें मंत्रोचार के सतह नहाना एवं अलंकार सज्जा पहनाया जाता है| इसके बाद जगन्नाथ जी को बाल्य भोग लगाया जाता है जिसमें खील, गुड़ के मुड़की, दूध, नारियल, दही, मक्खन और कई तरह के फल दिए जाते हैं| यह सरे भोग लगा कर भी एकबार कपूर आरती की जाती है| दोपहर में श्री जगन्नाथ को अरवा चावल का भात, मूंगदाल, अरहर दाल, लड्डू, छानापीठा इत्यादि भोग लगया जाता है| और फिर कपूर आरती करके भगवन को बिश्राम दिया जाता है| इसके बाद संध्या के समय मंदिर के द्वार फिर से खोली जाती है| धूप से और इक्कीस दीपक से आरती की जाती है और भगवान को संध्या भोग भी लगाया जाता है| रात्रि में शयन आरती के साथ मंदिर के कपट बंद हो जाते हैं| किसी विशेष पर्व पर भगवन जगन्नाथ को छप्पन भोग लगाया जाता हैं| कहते हैं की भगवन जगन्थ को चन्दन, कपूर और धूप के सुगंध बहुत ही प्रिय हैं|

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