श्री कृष्ण को भोग में क्या क्या चढ़ाय [Bhog for krishna]
वैसे
को हम जानते हैं कि श्री गोपाल को माखन चोर कहा जाता हैं और इसलिए हम ज्यादातर
माखन और मिश्री ही गोपालजी को भोग में चढ़ाते हैं| पर अगर हम जन्माष्टमी
के दिन भोग चढ़ाने की बात करें तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए की हम भोग बिलकुल उसी
तरह से चढ़ाय जैसे हम अपने घर के एक बच्चे के लिए करते हैं जैसे खिचड़ी, हलवा, लड्डू, खीर, बतासा, रसमलाई, राबड़ी
जैसे खास चीजे| यह बच्चों को खाने में बहुत ही पसंद होता हैं और बल गोपाल जी को भी| उन्हें
एक बचा समझ कर ही आप भोग चढ़ाय नाकि सिर्फ पूजा कर रहें हैं इसलिए| वैसे
अगर आपके पास भोग बनाने की सुबिधा नहीं है और आप नहीं चढ़ा सकते हैं तो तुलसी, जल
और पंचामृत जरूर चढ़ाय|
अगर आप राजभोग यानि कि छप्पन भोग भगवान को चढ़ाना
चाहते हैं जन्माष्टमी या नंदोत्सव पर तो उसके लिए आप पीतल के कड़ाई और काठ से बने
कलछी से ही ही भोग बनाय, हो सके तो रोज जहाँ आप खाना बनाते हैं वह न बनाय और भोग बनाने से
पहले उस जगह पे धुप जरूर कर ले|
अगर आप अपने रसोई में ही भोग बनाते हैं तो उससे एक
अलग गंध होती है जो भी पूजा में एक आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाय रखने में सही नहीं
होता है| भोग बनाने समय बात बिलकुल न करें और बहा धोकर ही भोग बनाय| अगर
आप छप्पन तरह के भोग नहीं बना सकते तो कम से कम ७,११, २१
तरह के पकवान भोग में बनाय| भोग में पुलाओ, दाल, पूरी, सब्जी, खीर जरूर रखें और अगर आप सिर्फ खिचड़ी से भोग लगाना कहते हैं तो खिचड़ी
के साथ तीन या पांच तरह के सब्जी जरूर दे| पूजा में हर भोग के साथ
मिश्री का शरबत कान्हा को जरूर चढ़ाय और साथ ही तुलसी का पत्ता| भोग
चढ़ाने के बाद आरती क्रूर करें और आचमनीय जल भी अर्पण करें|
पूजा के समय अन्नभोग न चढ़ाय पूजा हो जाने के बाद
ही भोग लगे और फिर आरती करें| कृष जनम के बाद के दिन यानि कि नंदोत्सव के दिन ही भोग लगाना सबसे
सही होता है| घर के सभी और दोस्तों रिश्तेदारों में भी भोग प्रसाद को जरूर वितरित
करें और अगर आपके कोई अरिचित भी हो उनमे भी यह भोग बाटे| भोग
चढ़ाते समय तुलसी डालकर ही निवेदन करें और "एतद नैवेद्याय श्री कृष बसुदेवाय
नमः " कहकर ही अर्पण करें और भोग के साथ पानार्थ जल भी जरूर दे| बहुत
से जगह पर भोग अर्पण के समय सुगन्धित धूप जलकर रखते हैं ताकि बाहर के कोई भी
दुर्गन्ध भोग पर कोई असर न डाल सके भोग लगाते समय| पर एक बात यहाँ पर
ध्यान में रखें कि सबसे ज्यादा जरुरी है मन के भाव, आप
क्या चढ़ा रहे हैं और क्या नहीं इससे ज्यादा जरुरी है आप किस मन से उसे चढ़ा रहे हैं| भोग
चढ़ाने के बाद भोग आरती करें और भगवान को प्रणाम करके भोग आरती संपन्न करे और सबको
भोग प्रसाद के रूप में दे साथ ही आरती भी|

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