जन्माष्टमी विशेष : श्री गोविन्द देवजी आरती, जयपुर [Govind Devji ki Aarti]


जयपुर की असली राजा श्री गोविन्द देवजी ही है राजपरिवार के प्रधान मात्रा उनके प्रतिनिधि हैं| अगर आप इस मंदिर की विशेषता को खोजेंगे तो आप पीएंगे कि यहाँ मूल पूजा आरती ही है जो दिन में सातबार किया जाता है| यहाँ पर आरती को झांकी भी कहा जाता है जैसे मंगल आरती को मंगल झांकी धूप आरती को धूप झांकी ऐसे| भोर साढ़े चार बजे श्री गोविंद देवजी और राधारानी की मंगल आरती की जाती है यह आरती पांच बजे तक होती है| इसके बाद सुबह ७.३० से ८.४५ कि मध्य में होती है धूप आरती| धूप आरती के बाद मंदिर भक्तो के लिए खुला रहता है, इसके बाद सुबह नौ बजे से १०.१५ तक होता है गोविन्द देवजी की श्रृंगार आरती| इसके बाद भी दर्शन के लिए ठाकुरजी के दरवार खुले रहते हैं| करीब ११ बजे ठाकुरजी को राजभोग लगाकर भोग आरती की जाती है| इसके बाद दोपहर के समय बिश्राम के लिए ठाकुरजी के मंदिर के कपट बंद कर दिए जाते हैं और शाम को ५.४५ पर गावयाल आरती के साथ मंदिर खुलती है| इसके बाद शाम ६.४५ मिटिट से आठ बजे के बिच ठाकुरजी की संध्या आरती की जाती है| कहते हैं ठाकुरजी की इस आरती को देखकर संसार के सारे मोह को भूलकर बस गोविन्द नाम में सराबोर हो जाते हैं| संध्या आरती के बाद शयन के पोषक पहनाकर ठाकुरजी की शयन आरती यानि दिन की आखरी आरती की जाती है और इसके बाद ही उस दिनके लिए मंदिर के कपट बंद हो जाते हैं| दूसरे दिन मंगल आरती के साथ फिरसे ठाकुरजी जागते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देते हैं|

मंदिर के आरती के समय सर्दिओं के दिनों में थोड़ी बदल जाती है पर समय में  बहुत ज्यादा बदल कभी भी नहीं होता है| इसलिए अगर आप भी इसबार जयपुर घूमने जाये तो श्री गोविन्द देवजी के आरती के साक्षी जरूर बने|

फोटो : श्री गोविन्द देवजी टेम्पल डेली दर्शन 

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