वैष्णव मत से ऐसे मनाय श्री कृष्ण जन्माष्टमी [Vaishnav Janmasthami]
वैसे
तो जन्माष्टमी पुरे भारत भर में अलग अलग तरह से मनाई जाती है पर इसके सबसे सुन्दर
और सही तरीका आपको वैष्णव मत में ही देखने को मिलेंगे जो की वृन्दावन, मथुरा
और जयपुर में विशेष रूप से मनाई जाती है| श्री कृष्ण के जन्म वैसे तो
मध्य रात्रि को होती है और उसी समय उनकी आरती की जाती है पर गोस्वामी मत के कई
संप्रदाय में कृष्ण जन्म सुबह के समय ही मनाया जाता है| यह
चलन वृन्दावन में बहुत प्रचलित है| पुरे दिन भर श्री कृष्ण को
धूप डीप जलाकर आरती करने के साथ साथ कई तरह के पकवान, मिठाई
भोग लगाया जाता है| जैसे एक नया बचा जन्म लेके के बाद उसे अच्छे से नहलाया जाता ह्या उसे
सुन्दर से रखा जाता है ताकि उन्हें कोई समस्या न हो बिलकुल उसी तरह से ही श्री
कृष्ण की अभिषेक और आरती की जाती है दिनभर|
वैष्णव पूजा के नियम से जो लोग जन्माष्टमी मानते हैं वह सुबह सुबह
ठाकुरजी की आरती करके दिन में उत्सव की शुरुवात करते हैं| आपको
यहाँ पर यह जानकारी भी होना चाहिए की कई वैष्णव मत से मनाय जानेवाली जन्माष्टमी
नंदोत्सव के दिन ही मनाई जाती है|
क्यों के यह दिन कृष्ण के जन्म के उत्सव मनाने के
लिए सबसे सही और अच्छा दिन होता है| पहले सुबह आरती और अभिषेक
के बाद कान्हा की धूप आरती होती हैं और उन्हें माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है| इसके
बाद एकबार श्रृंगार आरती की जाती है कान्हा को अच्छे से सजाकर और फिर दोपहर के समय
राजभोग या छप्पन भोग लगाकर भोग आरती की जाती है और उसके बाद शाम के समय संध्या
आरती और फिर एकबार आरती करके जन्मास्टमी उत्सव का समापन होता है| कई
जगह संध्या आरती के बाद रत १२ बजे कृष्णा जन्म अनुष्ठान होता हैं और फिर
विधिपूर्वक आरती होती हैं| वैष्णव पूजा में आरती ही एक विशेष परंपरा हैं यह अलग से किसी मन्त्र
और पूजा की जरुरत नहीं होती है|
जन्माष्टमी के अभिषेक, आरती
और भोग यह तीन चीजें बहुत ही जरुरी होती हैं|
वैष्णव आरती के बारे में आगे भी हम एक अलग ब्लॉग
बनाएंगे कि कैसे वैष्णव आरती आप भी कर सकते हैं|

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