श्रृंगार आरती [Shringar Aarti]
श्रृंगार आरती भी एक तरह से धूप आरती ही होती है| संध्या आरती से पहले यानि संध्या बंदन से पहले जो श्रृंगार भगवान को करवाई जाती है और उसके साथ ही आरती की जाती है उसे श्रृंगार आरती कहते हैं| यह ज्यादातर मंदिर में ही होती है| श्रृंगार के लिए फूल माला से पहले सजाई जाती है और उसके बाद फिर धूप, दीप या कपूर से आरती करना चाहिए| इसे ही श्रृंगार आरती कहते हैं| पंच आरती क्रम में श्रृंगार आरती नहीं आती है पंचआरती क्रम में श्रृंगार के साथ ही संध्या आरती की जाती है|
श्रृंगार आरती के लिए फूल माला और और सुन्दर से वस्त्र पहना कर भगवान को तैयार किया जाता है जैसे की हम लोगों के सामने जाने से पहले सज श्रृंगार करते हैं वैसे ही संध्या आरती के समय भगवान को उनके भक्त निहारते हैं इसलिए उन्हें खूब श्रृंगार करवाई जाती है और साथ ही आरती यानि धूप या कपूर से आरती की जाती है| यह कोई बड़ी आरती नहीं होती है यह एक संक्षिप्त और सुन्दर आरती होती है भगवान के श्रृंगार के बाद| सबसे पहले तो भगवान को उनके श्रृंगार के सामान से सजाई जाती है उन्हें माला पहनाई जाती है और फिर उन्हें दर्पण दिखया जाता है इस भावना के साथ की वो कैसे लग रहे हैं एक बार वह भी आईने में देखे, जैसे हम सज श्रृंगार के बाद अपने आपको आईने में देखते हैं हम कैसे लग रहे हैं यानि हम लोगों के सामने जाने के लिए तैयार है या नहीं पूरी तरह से| दरअसल जैसे सुबह मंगल आरती के बाद स्नान करके भगवान श्रृंगार करते हैं और फिर उनकी धूप आरती होती है श्रृंगार आरती भी उसी भावना से की जाती है| श्रृंगार आरती का मूल भी धूप आरती ही है या फिर कह सकते हैं की धूप-दीप आरती|

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