धूप आरती [Dhoop Aarti]


धूप आरती सुबह के द्वितीय आरती है जो भगवन के स्नान के बाद किया जाता है| यह धूप से ही केवल की जाती है इसलिए इसे धूप आरती कहते हैं| मंगल आरती के बाद भगवान भगवान को स्नान करवा के उन्हें पोशाक और फूल माला से श्रृंगार किया जाता है उसके बाद सुगन्धित धूप से उन्हें धूप विलास यानि आरती की जाती है| बहुत से लोग घर पे मंगल आरती नहीं कर पाते होने क्यों के वह ब्रह्म मुहूर्त में करना होता है इसलिए धूप आरती से ही अपने घर की पूजा की शुरुवात कर ते हैं| मंदिर और मठ में मंगल आरती के बाद धूप आरती की जाती है| कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर के माँ काली की धूप आरती जयपुर में गोविंद देवजी की धूप आरती बहुत ही प्रसिद्ध है| 

धूप आरती में धुनुची में नारियल छिलका, धूना, गुग्गुल जलाकर उससे आरती की जाती है| धूप के साथ साथ घी दीपक से भी किसी किसी जगह पर आरती की जाती है पर धूप आरती में धूप ही प्रधान होती है| धूप को प्राकृतिक वनस्पति रस कहा गया है जो की शुद्ध है अगरबत्ती से धूप आरती कभी नहीं की जाती है| धुनुची धूप से ही धूप आरती होती है| अगर आपको धूप आरती के सबसे अच्छे नज़ारे देखने हैं जो कि हर विशेष रूप से होती है वह है बंगाल के दुर्गापूजा के समय| बनारस के घाट पर होनेवाली आरती में भी सुबह शाम आरती की शरुवात धुनुची धूप आरती से ही होती है| कई कई जगह पर धूप आरती को ही मंगल यानि दिन की प्रथम आरती मानी जाती है| धूप आरती आप हर आरती में ही कर सकते हैं पर केवल धूप से आरती स्नान के बाद ही किया जाता है इसलिए इसे अगल से धूप आरती नाम दिया गया है|

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