संध्या आरती [Sandhya Aarti]


सूर्य अस्त के बाद जो आरती होती है उसे संध्या आरती कहते हैं| सारे आरती में यह सबसे मनमोहक और संदर आरती होती है| यह पंच नीराजन पद्धति से की जाती है जैसे कि धूप, पंचप्रदीप, शंख पूर्ण जल, पुष्प और चामर यानि चँवर से| यह पंच उपाचार प्रधान होती है पर स्थान और नियम के अनुसार इसमें और भी उपाचार जोड़ा जा सकता है| इस समय घंटी और शंख बजे जाती है या फिर संध्या आरती बंदन के साथ भी यह आरती की जाती है| घरों में भी संध्या आरती और पूजा आरती ही प्रधान होती है| इस आरती को कई तरह के नामा से जाना जाता है जैसे संध्या आरती, संध्या पूजा आरती, संध्या श्रृंगार आरती, संध्या भोग आरती, संध्या धूप अर्चन आरती, संध्या धूप आरती पूजा, संध्या धूप-दीप अर्चन इत्यादि|

संध्या आरती के समय सबसे पहले भगवान या इष्टदेव को धूप अर्पण करके अर्चन किया जाता है और धूप से सुगन्धित पवित्र धुंएँ से सराबोर होकर धूप से फिर घी के पंचप्रदीप से जलपूर्ण शंख से कमल या कुछ दूसरे पुष्प से इसके बाद मौर पंखा या चामर से आरती संपन्न होती है| सन्धाय आरती का समय देवता के साथ भगवान का मेल मिलाप का समय होता है पुरे दिन में यही एक समय होता है जब भक्त अपने भगवान की पूर्ण रूप से श्रृंगार के साथ दर्शन करते हैं और सुगन्धित धूप-प्रदीप जलाकर उनकी आरती करते हैं| इस आरती में कोई जातिवाद नहीं होता कोई छोटा बड़ा नहीं होता है सब एक जैसे ही होते हैं| आरती कोई भी कर सकता है भगवान के धूप-दीप अर्चन करने में कोई ब्राह्मण होना, दीक्षित होना या ज्ञानी होना जरुरी नहीं है अगर जरुरी है तो वह है अंतर मन की भक्ति और प्रेम| यही है संध्या आरती का मूल मंत्र|

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