मंगल आरती [Mangal Aarti]


मंगल आरती को प्रभात आरती भी कही जाती है क्यूंकि यह भोर के समय की जाती है| सूर्योदय से पहले इस आरती को करते हैं इसलिए यह मंगल आरती होती है यह दिन की पहेली आरती होती है जिसे ब्रह्म मुहूर्त में ही करना होता है| इस आरती के मध्य से हम भगवन को निद्रा से जगाते हैं या फिर ऐसा भी कहा जाता है कि यह निद्रा से जागने के बाद भगवान की पहली आरती है| यह आरती संक्षिप्त आरती होती है जो कि धूप, दीप या कपूर से की जाती है| कुछ जगह पर इस समय भगवान को जल प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है ऐसे मान्यता के साथ ही नींद से जागने के बाद भगवान को प्यास लगी होगी|

 मंगल आरती करने के लिए सबसे पहले जल छिड़का जाता है और शंख ध्वनि के साथ भगवान को जगाकर धूप से और फिर दीप से आरती की जाती है कुछ मंदिर या मठ में धूप और कपूर से भी मंगल आरती अनुष्ठित होती है| मंगल आरती के बाद ही भगवान की दिनचर्या और सुबह की पूजा या स्नान की जाती है| मंगल आरती के समय धूप करने को ऊषा धूप अर्चन भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है  सुबह सुबह धूप से भगवान को एक ताजापन देना जैसे हम सुबह सुबह नींद से जागकर धूप करते हैं ताकि हमर पूरा दिन फ्रेशनेस से भरी रही उसी तरह मंगल आरती में धूप जलाकर धूप-दीप से आरती की जाती है| अगर आप मंगल आरती करते हैं और आपके पास पंचप्रदीप जलने की समय न हो तो भी आप एक आरती दीपक से भी आरती कर सकते हैं| 

मंगल या प्रभाती आरती के लिए वैसे तो ब्रह्म मुहूर्त सबसे अच्छा और सही होता है पर अगर सुबह 6 बजे भी यह आरती कर पते हैं तो भी कोई समस्या नहीं है| निंग से जागने के बाद अगर आपके पास समय है तो आप कपड़े बदल कर पुरे घर पे जल छिड़क कर  शंख ध्वनि करें साथ ही धूप जलाय (अगरबत्ती नहीं) और धूप दीप से भगवान की मंगल आरती करें इसके बाद आप अपने घर के काम ख़तम करके नहा धोकर 10 बजे से पहले पूजा और पूजा आरती करें|

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