वैष्णव और शाक्त पूजा में कैसे करते हैं दिया बाती? [Vaishnav aur Shakt puja me Diya Batti]
हम पूजा के लिए घर पे रोज दीपक जलाते ही है और अगर अलग से दीपक न भी जलाय तो भी आरती के लिए पांच बत्ती लगाते ही है| वैसे तो हम सफ़ेद रुई से यह दीपक जलाते हैं पर क्या आप जानते हैं कि वैष्णव और शाक्त पूजा में दीपक जलने के अलग अलग विधान हैं और बहुत काम ही सफ़ेद रुई से बत्ती जलाई जाती है| सबसे पहले यह बात जान ले कि वैष्णव अपने पूजा में पीले यानि संस्कृत में जिसे पीत वर्ण कहा गया है उसे सबसे ज्यादा शुभ मानते हैं और शाक्त अपने पूजा में लाल रंग यही संस्कृत में जिसे रक्त वर्ण कहाँ गया है उसे सुबह मानते हैं| पूजा में दीपक जलाने का मतलब होता है उस देवी या देवता के तेज को दीपक के रूप में स्थापित करना| अगर हम कोई पूजा संकल्प लेकर करते हैं तो इसलिए आरती के दीपक के इलावा भी एक अखंड दीपक जलाई जाती है क्यों के वह प्रतीक होता है उस भगवान की जिसकी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करके हम पूजा कर रहे होते हैं| आरती के दीपक अग्नि तत्व का प्रतीक माना जाता है इसलिए हर परंपरा में उसके जलाने और आरती करने के विधान अलग अलग है| हाँ यह बात सच है की इस हर विधि का एक ही लक्ष होता है परमात्मा तक पहुंचना|
वैष्णव अपने पूजा और आरती के दीपक पीले रुई से लगाते हैं और घी या टिल के तेल का ही ज्यादा इस्तेमाल करते हैं| घर पे अगर कोई लक्ष्मी नारायण पूजा कर रहे हैं तो वह सरसो के तेल का इस्तेमाल तो करते हैं पर वैष्णव मठ या संघ में घी, तेल, और पीले रुई से ही जलाते हैं| कहते हैं श्रीहरि बिष्णु को पीले रंग सबसे ज्यादा पसंद है जो की अनुराग यानि दूसरे के प्रेम में रंगने का का रंग होता है इसलिए वैष्णव अपने पूजा में इस रंग को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं| अगर आप भी अपने घर पे जन्माष्टमी, रामनवमी या दीपावली के दिन लक्ष्मी-नारायण की पूजा कर रहे हैं तो पीले रुई की बत्ती जलाय आरती के लिए| आपको अपने नुक्कड़ के पूजा सामग्री दुकान में यह पीले रंग के रुई जरूर मिल जाएगी|
दूसरी तरफ शाक्त पूजा में लाल रंग के रुई इस्तेमाल की जाती है क्यों के लाल रंग उत्साह और शक्ति का प्रतीक होता है| घर पे अगर आप दुर्गा माँ की पूजा करें तो सईद सफ़ेद रुई की बत्ती ही इस्तेमाल करते होंगे पर जो शाक्त मत के अनुसर माँ की उपशना करते हैं वह हमेशा ही लाल रंग के कपड़े या रुई से ही दीपक जलाते हैं| अगर आप घर पे नवरात्री के दिनों में या फिर मंगलवर माँ की आरती या पूजा करते हैं तो उसमें लाल रुई की बत्ती जला सकते हैं| पर ध्यान रखे माँ की उपशना वैष्णव मत से भी की जाती है और उसमें पीले रुई के बत्ती का ही इस्तेमाल करें| शक्ति यानि देवी पूजा में घी, तिल का तेल और सरसो का तेल इस्तेमाल किया जाता है| माना जाता हैं लाल रंग देवी माँ की सबसे पसंद की रंग है जो किसी भी कार्य को करने के लिए एक नै ऊर्जा प्रदान करती है इसलिए माँ की सामने लाल रुई से बाटी लगाकर कई नै उद्यम और उत्साह के साथ कोई भी काम को करते हैं|
अगर आपके बाजार से लाल रंग की रुई न मिले तो आप सफ़ेद रुई का भी इस्तेमाल कर सक सकते हैं या फिर पीले रुई का इस्तेमाल कर सकते हैं| वैसे सफ़ेद रुई की तरह पीले रंग के रुई भी हर पूजा में इस्तेमाल कर सकते हैं उसके लाइट कोई निषेध नहीं है पर लाल रंग के रुई केवल देवी पूजा में ही इस्तेमाल करें| कुछ लोगों का कहना है कि तेल के दीपक लाल रंग के रुई से ही जलानी चाहिए जो कि पूरी तरह से सही विधि नहीं है| आप सफ़ेद रुई की तरह ही पीले रुई को हर पूजा में इस्तेमाल कर सकते हो पर लाल रुई केवल जब आप देवीपूजा करें तभी इस्तेमाल करें| आरती के लिए भी आप सिर्फ सफ़ेद रुई का इस्तेमाल न करके रोज के पूजा में पीले रुई की बत्ती जलाकर आरती करेंगे तो बहुत ही अच्छा रहेगा| कहते हैं रंग ही जीवन की प्रेरणा है इसलिए अगर हम थोड़ा रंग अपने रोज के पूजा आरती में भी इस्तेमाल करेंगे तो यह हमारे पूजा को और उत्साह और प्रेमपूर्ण कर देता है|
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