काशीश्वरी माँ अन्नपूर्ण की आरती [Varanasi Maa Annapurna Aarti]
काशी को शिव नगरी कहा जाता है पर काशी माँ अन्नपूर्णा के कृपा से ही चलता है इसलिए काशी को सारे जग से निराला कहा गया है क्यों के यहाँ माँ अम्बे अन्नपूर्णा रूप में निवास करती हैं और अपने भक्तों की सारि मनोकामनाएं पुरी करती है| माँ अन्नपूर्णा काशीश्वरी है इसलिए उनकी आरती में भी काशीवासी अपने जीवन को खोज लेते हैं| असल में काशी की प्राण है माँ अन्नपूर्णा ही है अगर कशी में बाबा विश्वनाथ मोक्ष देते हैं तो माँ अन्नपूर्णा अन्नदान से जीवन देते हैं| कहते हैं काशी में अगर आप रहते हो तो आपको कभी किसी वास्तु की कमी नहीं होगी अगर आपके पास बहुत से धन न भी हो फिर भी माँ अन्नपूर्णा की कृपा से सब कुछ उन्हें कही किसी को दरिद्रता के सामना नहीं करना होता है|
रोज सुबह चार बजे माँ की मंगल आरती की जाती है इसके बाद माँ को भोग लगया जाता है और भोग आरती होती है ग्यारह बजे, काशी में माँ अन्नपूर्णा को सबसे पहल भोग लगाई जाती है तवी दूसरे मंदिर में भोग चढाई जाती है इसलिए जल्दी जल्दी भोग माँ को चढाई जाती है तवी उनके सारे संतान सोपहर का खाना प्रसाद रूप में ले पाएं| जानकारी के लिए आपको बता दे की हर मंदिर में दोपहर यही 12 बजे से पहले ही भोग चढाई जाती है क्यों के उसके बाद राक्षसी बेला हटा है और उस समय कवी भी भोग नहीं चढाई जाती है| माँ को दोपहर के विश्राम के बाद संध्या के समय सात बजे संध्या आरती की जाती है| कहते है की अगर आप माँ अन्नपूर्णा के संध्या आरती में एकबार शामिल हो जाते हैं तो आप दुनिया के सारे मोह भूल जायेंगे| रात दस बजे माँ अन्नपूर्णा की शयन आरती होती है और फिर मंदिर की दरवाजा बंद कर दी जाती है| अगले दिन मंगल आरती के साथ फिर से माँ की दिनचर्या शुरू ह जाती है|

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