रानी रासमणि परिवार में जगद्धात्री पूजा [Rani Rashmoni Famly Jagadhatri Puja]
दक्षिणेश्वर काली मंदिर के साथ रानी रासमणि के नाम इतिहास के पन्नो में स्वर्णक्षर में दर्ज हो चूका है| पर रानी रासमणि के शत्कि उपसना उन्होंने अपने परिवार से ही शुरू की थी जिसके प्रमाण आज भी उनके परिवार में मनाई जानेवाली दुर्गापूजा और जगद्धात्री पूजा में दिखाई देती है| रानी रासमणि और उसके पति राजा राजचन्द्र दास ने पूजा को पारिवारिक रूप में आयोजन करते हुए भी सबके लिए अपने घर के दरवाजे खोल दिए थे| इसलिए आज भी आरती देखने के लिए और पुष्पांजलि देने के लिए बहुत से लोग रानी रासमणि परिवार के दुर्गादालान में उपस्थित होते हैं|
जगद्धात्री पूजा भी सम्पूर्ण शाक्त विधि अनुसार पालन किये जाते हैं| तीन भाग में यह पूजा अनुस्थित होती है पहले भाग को सप्तमी पूजा मानकर सम्पूर्ण की जाती है और फिर आरती के साथ सम्पूर्ण होती है दूसरे भाग को अष्टमी मानकर की जाती है इस दौरान भी आरती पुष्पांजलि से पूजा सम्पूर्ण होती है| इसके बाद होती है नवमी पूजा और कुमारी पूजा भी| नवमी के पूजा के समाप्ति में भी आरती की जाती है | संध्या के समय धूप अर्चन के साथ माँ की संध्या आरती की जाती है| रानी रासमणि परिवार में माँ जगद्धात्री को किसी भी प्रकार के कोई अन्न भोग नहीं चढ़े जाते हैं पूरी, भाजा (भुना हुआ पांच सब्जी), घर पे बनाई गई मिठाई, नारियल लड्डू से भोग लगाई जाती है| इस परिवार में किसी भी प्रकार के कोई कालीपूजा नहीं की जाती है क्यों के इनके परिवारवाले दक्षिणेश्वर काली मंदिर में ही पूजा चढ़ा ते है केवल काली माँ की मूर्ति बनाकर पूजा करना इस परिवार के लिए निषेध है| श्री रामकृष्ण परमहंस रानी रासमणि कुठी में दुर्गापूजा और जगद्धात्री दोनों पूजा में ही माँ को पूजा करने आते थे और आरती के समय माँ को चंवर से सेवा भी करते थे|
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