कब करें तुलसी विवाह कलश विसर्जन [Tulsi Vivah Visarjan]


वैसे तो तुलसी विवाह में बहुत से लोग पूर्णिमा तक ही पाटा रखते हैं पर आजकल बहुत से लोग दो दिन तक यानि द्वादशी तक ही यह रखते हैं और फिर कलश को विसर्जन कर देते हैं| पर सबसे कच्चा यही होता हैं की आप पूर्णिमा तक रखे और उस दिन पूजा आरती करने के बाद ही दूसरे दिन विसर्जन कर दे| इस दौरान बहुत कुछ करने की जरुरत नहीं होती है बस सुबह और शाम के समय आरती करना जरुरी है| धूप और दीप जलाय और आरती करें| अगर आप रोज की तुलसी पूजा इस दौरान करना चाहे तो आप विवाह पाटे में ही पूजा कर सकते हैं| नारायण को चन्दन सहित तुलसी अर्पण करना भी बिलकुल न भूले| पुरनी माँ के दिन बहुत से लोग सत्यनारायण कथा भी रखते हैं तुलसी विवाह के बाद पर कहें तो रखे सकते हैं या फिर केवल नारायण पूजा भी कर सकते हैं| कुछ लोग अलग से इस दिन राधा कृष्ण या लक्ष्मी नारायण की पूजा भी करते हैं|

श्री नारायण के पूजा में प्रत्यक्ष रूप से कोरे अक्षत नहीं चढ़ाने चाहिए पर अगर आप लक्ष्मी नारायण की पूजा रहे हैं तो आप पुष्पांजलि में अक्षत चढ़ सकते हैं| पर शालिग्राम पर या श्री विष्णु के मूर्ति में अक्षत न चढ़ाय केवल कलश पर ही अक्षत चढ़ाय| इस बारे में बहुत से लोगों का कहना है कि श्री हरि विष्णु को अरवा चावल नहीं चढ़ाने चाहिए यह एक तरह से सही बात है पर जब हम लक्ष्मी नारायण के एक साथ में पूजा करते हैं तो अक्षत चढ़ाने में कोई समस्या नहीं है| तुलसी पूजा में भी आम दिनों में कुमकुम या सिंदूर नहीं चढ़ाने चाहिए केवल तुलसी विवाह के दिन को छोड़कर| 

दोस्तों एक बात का ध्यान रखे कि पूजा में हम क्या चढ़ा रहे हैं और क्या नहीं यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है सबसे बड़ी विषय है कि हम पूजा कितने मन से कर रहे हैं और श्रद्धापूर्वक भगवान कि आरती कर रहे हैं,  क्या चढ़ाना निशेष है और क्या नहीं इससे कुछ बहुत ज्यादा फर्क नहीं होता हैं| हा गणेश जी को तुलसी या माँ दुर्गा को दूर्वा न चढ़ाय और अगर आप शालिग्राम से पूजा कर रहे हैं तो प्रत्यक्ष अक्षत न चढ़ाय इस बात को ध्यान रखे| साधारणत पीले पुष्प, चन्दन, अक्षत, धूप, दीप हर देवता को चढ़ा सकते हैं इसमें कोई समस्या बिलकुल भी नहीं है| हर पूजा के अपने अपने और प्रादेशिक विधान भी होते हैं इसलिए इतना न सोचे और केवल भगवान को मन से ध्यान करते हुए पूजा आरती करें|


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