धूप आरती इंडिया धुनुची-धूप और आरती को लेकर एक खोज है, साथ ही सहज और सरल तरीके से कैसे पूजा और आरती हम घर पे कर सकते हैं इसके बारे में भी आरती इंडिया आपको सम्पूर्ण जानकारी देता है|
सप्त आरती दीपक [ 7 Aarti Deepam ]
लिंक पाएं
Facebook
X
Pinterest
ईमेल
दूसरे ऐप
सप्त आरती दीपक के प्रतीक हमारे सूक्ष्म शरीर के सप्त चक्र |
हम भगवान की रोज पूजा करते है और साथ में कुछ नैवेद्य चढ़ाते ही है, जैसे धूप, दीप, फल, मिठाई या फिर पुष्प| नैवेद्य का मतलब होता है जो भी हम निवेदन करते है भगवान को| निवेदन करने के बाद यह प्रसाद बन जाता है| पर हम अपने मन में अक्सर यह धारणा पालते रहते हैं कि केवल जो खाद्य सामग्री हम चढ़ा रहे हैं वही नैवेद्य है, पर यह धारणा सम्पूर्ण सही नहीं है| भगवान को चढ़ाया गया हर कोई वस्तु नैवेद्य ही होता है इसलिए कई जगह पर अलग अलग पूजा के नियम भी दिखाई देते हैं, जैसे धूप पूजन, दीप आराधना पूजन, भोग आरती इत्यादि| अर्थात धूप जो आप चढ़ा रहे हैं वह भी नैवेद्य है, दीप से ही केवल आराधना किया जाता है वह भी नैवेद्य ही है, जो प्रसाद चढ़ाकर पूजा किया जाता है वह भी नैवेद्य ही है| तो हर वह बस्तु जो हम भगवान को चढ़ाते हैं वह नैवेद्य है जो भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद बन जाता है| इसलिए केवल खाना और चढ़े गए भोग ही केवल नैवेद्य नहीं होता है तो जो भी आप भगवान को निवेदन करते है उसे ही नैवेद्य कहते हैं, नैवेद्य का सही अर्थ शव्दकोष में दिया गया है वह है जो भी वस्तु अपने आराध्य को हम निवेदन करते हैं| निवेदन के बाद कोई भी ...
यदि हम शक्ति पूजा का मूल देखें, तो वह अग्नि में है। तंत्र मूलतः उपासना के नियम बताता है, जो अग्नि का चिंतन, अर्थात् अग्नि का नाम लेना है, जो धूप, दीप, आरती और हंमा के माध्यम से पूर्ण होता है। तंत्र की मूल प्रवृत्ति सग्नि प्रवृत्ति में है, किन्तु यद्यपि हंमा प्रवृत्ति उतनी स्पष्ट नहीं है, फिर भी आगम धूप-दीप में पूजित देवता की आराधना और आरती विधि से उनके प्रति समर्पण करने को कहा गया है। जब से तंत्र ने यज्ञ प्रवृत्ति को मुख्यतः तंत्र या मिश्रित आगम के रूप में कहना शुरू किया, तब से होम का महत्व बढ़ता गया है। किन्तु आजम की मूल प्रवृत्ति उपचार, अर्थात् पूजा और आरती अर्पण करने की है। दशांग होम, जो दक्षिण भारत में प्रचलित है, इसी नामाग्नि पूजा की एक विधि है, जिसे वाराणसी और विंध्याचल क्षेत्र में धूनी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। परन्तु तंत्र की मूल धारा आरात्रिक पूजा है, अर्थात् धूप-दीप की अग्नि में अपने इष्ट का चिंतन कर, उस अग्नि शक्ति से इष्ट शक्ति की आराधना करना। अतः हमारे नित्य धूप-दीप की अग्नि वही है, जिसे हम स्थूल मूर्ति में देखते हैं, अर्थात् उसका प्रकाश रूप। मूल शक्ति अग्नि रू...
टिप्पणियाँ