पीतल धुनाची / धुनुची [Dhunachi]


धुनाची, धुनुची या धूप पात्र कहा जाता है इसे| यह वैसे तो पुरे भारत में ही इस्तेमाल होता है अलग अलग तरह से पर पूर्व भारत के पूजा अर्चना में धूप देने कि परंपरा में इसकी इस्तेमाल बहुत ही ज़्यादा है| धुनाची पीतल और मिटटी से बनाई जाती है कभी कभी यह चांदी से भी बनाई जाती है पर पीतल के धुनाची ही ज़्यादा इस्तेमाल कि जाती है| भाषा के अंतर में इसे धुनाची या धूनची कहा जाता है जिसका मतलब है कि धूना देने की पात्र| धूना शाल बृक्ष का गोंद होता है जिसे हम प्राकृतिक धूप के रूप में इस्तेमाल करते हैं| बंगाल में इसे नारियल के सूखे खोल यानि छिलके से जलाई जाती है और धूना, गुग्गूल से जलाई जाती है जिससे सुगन्धित धुंआ होता है| उत्तर भारत में कुछ जगह इसे गाये के गोबर से बने कंडे से भी जलाई जाती है| यह पूरी तरह से प्राकृतिक धूप से और इसके धुंआ से हमारे शरीर को किसी प्रकार हानि होने की आशंका काफी कम होती है|

किसी भी पूजा में धुनाची आरती यानि धूप आरती करने की परंपरा है, यह प्राकृतिक धूप जलाने से पूजा के बातावरण शुद्ध और मन पवित्र हो जाता है| धूप दीप आरती एक प्राचीन परंपरा है जिसमे धुनाची इस्तेमाल किया जाता था| सिंधु घाटी सभय्ता के समय में भी धातव धुनाची और दीपक इस्तेमाल किया जाता था| उपासना और घर को सुगन्धित करने के लिए ही उस समय प्राकृतिक धूप धुनाची में जलाई जाती थी| वाराणसी में गंगा आरती में और बंगाल की दुर्गापूजा में धुनाची आरती की झलक मन को मोह लेता है| हम आजकल अगरबत्ती या धूपबत्ती ज़्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं पर धुनाची आरती ही सही में धूप आरती है जो हमारे प्राचीन आरती पूजा पद्धति को दर्शाता है|

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