जन्माष्टमी विशेष: बांके बिहारी आरती, वृन्दावन [Banke Bihariji ki Aarti]
कहते हैं बांके बिहारी लाल प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं जिसने भी उनको एकबार देख लिया वह उनके मोह में मोह ही जाते हैं| इसलिए तो ठाकुरजी के दर्शन के समय पर्दा गिराकर दर्शन करवाई जाती है ताकि उनसे कोई मह न लगा बैठे और वह उस भक्त के प्रेम के साथ ही न चले जाये| अगर आप कभी वृन्दावन गए हैं और बांके बिहारी लाल की दर्शन की है तो आपको पता चलेगा कि क्या होता हैं उनके आरती के रंग| बांके बिहारी मंदिर की सबसे खास बट यही है कि आरती के समय कोई शंख या घंटा ध्वनि वह नहीं कि जाती हैं केवल राधा नाम के साथ ही आरती की जाती है|
सुबह मंगल आरती के बाद आठ बजे मंदिर खोजी जाती हैं और इस समय बांके बिहारी लाल की श्रृंगार आरती होती है| इसके बाद दोपहर १२ बजे राजभोग लगाकर की जाती है बांके बिहारी लाल की भोग आरती| इसके कुछ देर बाद लल्ला को बिश्राम करने के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है और संध्या कालीन दर्शन के लिए शाम ५ बजे से रत के नौ बजे तक मंदिर खुले रहते हैं| इस दौरान ठाकुरजी की संध्या आरती की जाती है और मंदिर बंद होने के समय की जाती है शयन आरती|
जन्माष्टमी पर बांके बिहारी मंदिर में एकबार ही जन्माष्ठमी की विशेष आरती होती है और लाड़ू के भोग भी लगाय जाते हैं| आरती में राधारानी के नाम के साथ 'राधे राधे' बोली जाती है यही साल आरती संगीत हैं वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर की| कहाँ जाता है की बांके बिहारी की सेवा बिलकुल उसी तरह की जाती हैं जैसे माँ यशोदा बाल कृष्ण के सेवा करते थे| इसलिए यह घंटी या शंख नहीं बजाई जाती है जैसे घर पे बच्चे रहने पर भी हम पूजा के समय शंख या घंटा ध्वनि नहीं करते हैं|
फोटो : बांके बिहारी टेम्पल

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