दीपावली पर आरती करे या न करे? [Diwali par Aarti]
बहुत सारे लोगों का कहना है कि क्या हम दीपावली पर माँ लक्ष्मी कि आरती करे या न करें? क्यूंकि बहुत से लोग कहते है कि आरती करने का मतलब होता है माँ लक्ष्मी को जाने को कहना| पर आपको एक बात सबसे पहले बता दे कि आरती से कोई आने जाने का सम्बन्ध बिलकुल भी नहीं है| आरती करने का मतलब होता है भगवान को प्रेम से धूप-दीप दिखाना या उनके सम्मान करना| अगर आप कोई भी पूजा करते है पर आप आरती नहीं करते है उसके आखिर में तो वह पूजा असम्पूर्ण मानी जाती है| वैसे तो आरती एक स्वंय सम्पूर्ण पूजा है पर यह पूजा के लिए भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण आचार है| इसलिए किसी भी पूजा से पहले संक्षिप्त यानि धूप और दीप से और पूजा के अंत में धूप-दीप-शंखजल-पुष्प-चंवर से यानि पंच आरात्रिक पद्धति से आरती करनी चाहिए| और हम नवरात्रि और गणेश पूजन में भी नौ दिन या दस दिन तक माता को या बाप्पा को घर पे रखके आरती करते हैं यानि सेवा करते हैं| अगर आरती करने से भगवान चले ही जाते तो इन पूजा उत्सव में भी हम आरती नहीं करते| हम अपने भगवान को अपना प्रेम देना कहते हैं उनकी सेवा करना कहते हैं आरती एक सम्पूर्ण सेवा हैं और एक विशेष सेवा भी| अगर आरती करने से भगवान हमारे घर से चले जाते तो हम केवल विसर्जन के दिन ही आरती करने की विधान होती ऐसा बिलकुल गलत बात है क्यों के हम रोज घर पे पूजा में भी आरती करते हैं| तो दीपावली के दिन आरती करने से लक्ष्मी माँ चले जायेंगे ऐसा बिलकुल गलत सोच है| माँ लक्ष्मी को धूप और दीप बहुत ही पसंद हैं इसलिए हम दिवाली पर उनके अर्चन करते हैं| माँ को अच्छे सुगन्धित धूना-गुग्गुल से धुनुची धूप जलाके और घी या तिल के दीपक जलाकर आरती करनी चाहिए|
आरती को मंत्रहीन और क्रियाहीन कहा गया हैं मतलब अगर आपको पूजा के कोई क्रिया या मंत्र न भी ए तो भी आप केवल आरती करके ही सम्पूर्ण पूजा कर सकते हैं| इसलिए सम्पूर्ण मन से माँ लक्ष्मी की आरती करें अगर आप चाहे तो विशेष तरह के आरती भी कर सकते हैं जैसे धूप से धूप आरती, भोग लगकर भोग आरती, पूजा के अंत में पूजा आरती| आरती एक स्वतंत्र और सहज पूजा हैं जो कोई भी कर सकता है और हर देवी देवता के लिए आरती करने की विधान है| इसलिए बिना भ्रमित हुए आरती करें इस दीपावली पर|

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