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दिसंबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धुनुची / धूपची का अर्थ ( Dhunuchi / Dhupachi )

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धुनुची का अर्थ होता है धूना जलाने के पात्र | धूपर्ची एक द्रविड़ शव्द है जो की प्राचीन तमिल से आया है अर्चि यानि अर्चना पात्र के संदर्व में यह आता है | धुनुची या धूपची का अर्थ होता है धूप या धूना धूनी देने के अर्चन पात्र | इसके साथ कोई मुस्लिम या ईसाई का सम्बन्ध नहीं है | यह प्राचीन तंत्र यानि विधि के विषय से आता है | सिंधु सभ्यता में भी धुनुची यानि धूप देने वाले अर्चन पात्र मिला है | धातु धूप पात्र के विषय तमिल पुराने ग्रन्थ में भी कई बार उल्लेख मिलता है, आज भी धूप आराधना द्रविड़ परंपरा तथा बंगाल से बनारस तक बहुत ही प्रचलित |  धूना धूप को सुरधूप कहा गया है जो की हमारे परंपरा है | लोबान के परंपरा मुग़ल कल से शुरू हुआ इसलिए आज भी यह उत्तरभारत में ज्यादा प्रचलित पूर्वी या दक्षिण भारत में नहीं | लोबान का कोई विरोध अगम नहीं करता है सिल्हक जैसे स्वर्ण लोहबान का उल्लेख अगम में है जो की बहुत से धूप सामग्री के साथ बने जाते थे पर केवल लोहबान क परंपरा हिन्दुओं में नहीं है और धुनुची से लोहबान का कोई सम्बन्ध नहीं | यह परंपरा आदि धूप परंपरा और धूप पात्र रूप में भी धुनुची परंपरा आदि कालीकुल और श्रीक...

श्री श्री सारदा सरस्वती धुनुची धूप & पंचदीप आरती

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  धुनुची धूप आरती : ॐ एतस्यै वं आरात्रिक धूपाय नमः| एते गंध पुष्पे आरात्रिक धूपाय नमः| एते गंध पुष्पे एतद अधिपतये देवाय श्री विष्णवे नमः| एते गंध पुष्पे एतद सम्प्रदानाय ॐ श्री श्री सारदा सरस्वती देव्यै नमः| " ॐ वनस्पति रसो दिव्यो गन्धाढ्यः सुमनोहरः | मया निवेदिता भक्त्या धूपोहयं प्रतिगृह्यताम|| " एष आरात्रिक धूपः ॐ श्री श्री सारदा सरस्वती देव्यै निवेदयामि। पंचदीप आरती : ॐ एतस्यै वं आरात्रिक दीपः नमः| एते गंध पुष्पे आरात्रिक दीपः नमः| एते गंध पुष्पे एतद अधिपतये देवाय श्री विष्णवे नमः| एते गंध पुष्पे एतद सम्प्रदानाय ॐ श्री श्री सारदा सरस्वती देव्यै नमः| " ॐ कार्पसवर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम| तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वर-परमेश्वरि|| " एष आरात्रिक दीपः ॐ श्री श्री सारदा सरस्वती देव्यै निवेदयामि|

21 दीपमाला तत्व [ 21 Deepam Tattwa ]

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  21 दीपमाला तत्व - पांच कर्म इन्द्रिय, पांच ज्ञान इन्द्रिय, पंच तत्त्व / वायु, पंच तन्मात्रा और एक मन यानि एकविंशति यही मानस द्रव्य  सम्पूर्णता हम दीपमाला के माध्यम से और जाप के माध्यम से शक्ति को अर्पण करते हैं।

सप्त आरती दीपक [ 7 Aarti Deepam ]

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सप्त आरती दीपक के प्रतीक हमारे सूक्ष्म शरीर के सप्त चक्र |  मूलाधार चक्र  स्वाधिष्ठान चक्र मणिपुर चक्र अनाहत चक्र विशुद्धी चक्र आज्ञा चक्र सहस्रार चक्र  

धूप अर्घ्य [ Dhupa Arghya ]

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  धूप अर्घ्य - अर्घ्य का अर्थ है किसी विशेष वस्तु से देवता की पूजा करना, जैसे कि यज्ञ में मुख्य में दी जाने वाली आहुति उस अर्थ में विशेष होती है वैसे ही कोई भी पूजा में अर्घ्य एक विशेष निवेदन होता है इसलिए इसे मन का प्रतिक मन गया है। अर्घ्य देने के कई नियम हैं, जिनमें मुख्य रूप से काली कुल दानार्घ्य और श्रीकुल विशेष अर्घ्य के परंपरा नियम से ही पूजन किया जाता है | लेकिन कई अन्य प्रकार के भी हैं जैसे कि फूल, धूप आदि। पुष्पार्घ्य को कमल की पंखुड़ियों के साथ चढ़ाया जाता है और धूप को षडंग धूप और फूलों के साथ चढ़ाया जाता है। अर्घ्य देने के विषय में यह अर्घ्य उपचार पूजा के मध्य में भी दिए जाते हैं साथ ही मानस पूजा के बाद भी यह अर्घ्य प्रदान किया जाता है | Dhupa Arghya - Arghya means worship of the deity with something special As in yajna sacrifice in the main puja, the offering is special in that sense There are many rules for giving arghya, mainly Kali kula Danarghya and Srikula special arghya rules are given in order of tradition. But there are many other offerings such as flowers, ince...