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मार्च, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बनारस की ठठेरी बाजार और आरती पात्र [Varanasi thatheri bazar aur Aarti patra]

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अगर आप कभी कशी में माँ अन्नपूर्णा और बाबा विश्वनाथ की दर्शन करने गए होंगे तो सईद ठठेरी बाजार भी गए होंगे| वैसे बनारस की दो सबसे मशहूर गली विश्वनाथ गली जो भगवान विश्वनाथ मंदिर के मुख्या फाटक से शुरू होकर मंदिर तक जाता है और दूसरा ठठेरी बाजार या ठठेरी गली जो मंदिर से कुछ दूर ही हे बस| बनारस के यह दो गली पूजा के बर्तन खास कर आरती के बर्तन के लिए बहुत ही मशहूर है| केवल बनारस में ही नहीं पुरे भारत और दुनिया के कई जगह से ब्यापार होती इस ठठेरी बाजार की| यहाँ के आरती की पत्र की खास बात यह है कि यहाँ के पात्र बनारस में ही बनाई जाती है और हर कोई अपने मंदिर और घर के पूजा के लिए ऑर्डर देकर आरती के पात्र बनवाते हैं| अगर आप चाहे तो आप भी ठठेरी बाजार से  अपने घर की या किसी मंदिर या बार्षिक पूजा यानि जैसे दुर्गापूजा के लिए यहाँ से बर्तन बनवा सकते हैं| बनारस में आरती के धुनुची, झाला आरती दीपक, पंचदीपक, नागमुखी कपूर पात्र बहुत ही सुन्दर बनाई जाती है|

होली पूजन के सामग्री [Holi Pujan Samagri]

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होली के दिन आप कई तरह से पूजा कर सकते हैं जैसे श्री राधा कृष्ण की पूजा कर सकते हैं, लक्ष्मी नारायण की पूजा कर सकते हैं, राम-सीता पूजन भी आप कर सकते हैं और लाल अबीर और गुलाल से माँ भगवती दुर्गा की पूजा भी आप कर ही सकते हैं| एक बात यहाँ पर ध्यान रखना जरुरी है कि अगर आप वैष्ण्ब पूजा यानि लक्ष्मी-नारायण, राधा-कृष्ण, राम-सीता पूजन कर रहे हैं तो उसमे लाल रंग के अबीर का प्रयोग न करें केवल नारंगी और पीले रंग के अबीर का ही प्रयोग करें| पर अगर आप देवी माँ कि पूजन कर रहे हैं तो उसमे लाल रंग के अबीर का ही प्रयोग करें| आइये संक्षिप्त में जान लेते हैं क्या क्या सामग्री पूजा के लिए जरुरी है होली पर- १. पूजा की चौकी अगर मंदिर हे तो वही पूजा करें २. लाल या पीले रंग का कपड़ा ३. अबीर, गुलाल, चन्दन ४. कलश, आम पत्ते, नारियल, अर्घ्य पात्र ५. पूजा के फूल ६. अक्षत ७. पीतल धुनुची ८. धूप, गुग्गुल ९. पंचदीपक १०. घी, बाती  ११. बतासे का शरबत १२. आचमन पात्र होली पूजन में कलश स्थापना करना जरुरी नहीं होता पर अगर आप अपने पूजा को विशेष बनाना चाहते हैं कलश स्थापना जरूर करें| बतासे के शरबत के साथ अगर...

नैवेद्य और प्रसाद क्या होता है [Naivedya aur Prasda]

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हम भगवान की रोज पूजा करते है और साथ में कुछ नैवेद्य चढ़ाते ही है, जैसे धूप, दीप, फल, मिठाई या फिर पुष्प| नैवेद्य का मतलब होता है जो भी हम निवेदन करते है भगवान को| निवेदन करने के बाद यह प्रसाद बन जाता है| पर हम अपने मन में अक्सर यह धारणा पालते रहते हैं कि केवल जो खाद्य सामग्री हम चढ़ा रहे हैं वही नैवेद्य है, पर यह धारणा सम्पूर्ण सही नहीं है| भगवान को चढ़ाया गया हर कोई वस्तु नैवेद्य ही होता है इसलिए कई जगह पर अलग अलग पूजा के नियम भी दिखाई देते हैं, जैसे धूप पूजन, दीप आराधना पूजन, भोग आरती इत्यादि| अर्थात धूप जो आप चढ़ा रहे हैं वह भी नैवेद्य है, दीप से ही केवल आराधना किया जाता है वह भी नैवेद्य ही है, जो प्रसाद चढ़ाकर पूजा किया जाता है वह भी नैवेद्य ही है| तो हर वह बस्तु जो हम भगवान को चढ़ाते हैं वह नैवेद्य है जो भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद बन जाता है| इसलिए केवल खाना और चढ़े गए भोग ही केवल नैवेद्य नहीं होता है तो जो भी आप भगवान को निवेदन करते है उसे ही नैवेद्य कहते हैं, नैवेद्य का सही अर्थ शव्दकोष में दिया गया है वह है जो भी वस्तु अपने आराध्य को हम निवेदन करते हैं| निवेदन के बाद कोई भी ...

एक दीपक से आरती करने की जगह कर सकते हैं कपूर आरती [Deep Aarti and Kapoor Aarti]

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बहुत से लोग रोज के पूजा में एक दीपक जलाकर आरती करते  हैं पर एक बात ध्यान में रखना जरुरी है कि आरती हमेशा पंचा या सप्त दीपक से ही करना चाहिए| अगर आपके साथ यह दीपक नहीं हैं या फिर आप जल्दी जल्दी में अच्छे से पंचा दीपक नहीं जला पा रहे हैं तो बिलकुल भी कोई चिंता न करें, केवल कपूर जलाकर भी आप आरती कर सकते हैं या फिर धूप और कपूर जलाकर भी आप आरती कर सकते हैं| एक दीपक से आरती करने से बेहतर यही होता है कि आप पहले धूप से आरती कर ले उसके बाद कपूर जलाकर आरती करें| पर सबसे अच्छा होता हैं अगर आप सप्त या पंचदीपक जलाकर ही आरती करें| एक दीपक के जगह अगर कपूर जलाते हैं केवल तो भी कपूर दानी में ही कपूर जलाय| वैसे तो कपूर धूप और दोनों के ही प्रतीक के रूप में जलाई जाती है पर अगर आप धूप से आरती करते हैं तो धूप जलाते समय उसमे कपूर न डाले केवल गुग्गुल और धुंआ से ही धूप जलाय और धूप, कपूर से आरती करें|

कपूर और धूप आरती दोनों करना जरुरी है? [Kapoor aur Dhoop Aarti]

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बहुत लोग इस बात को लेकर बहुत ही दुबिधा में रहते हैं कि धूप और साथ में कपूर आरती करना जरुरी हैं या नहीं| यहाँ पर सबसे पहले तो एक बात जानना जरुरी है कि कपूर को धूप के भीतर भी गिना जाता है जो पंचांग धूप से लेकर सारे प्रकार के धूप में ही इस्तेमाल किया जाता है, साथ ही अगर आप धूप जलने के लिए केवल धूना और गुग्गुल इस्तेमाल करते हैं तो भी कपूर से उसे जलना आसान होता है और साथ में लाभदायक भी| कपूर और गुग्गुल के धूप हानिकारक भी नहीं होता साथ ही यह सेहत के लिए भी कभी फायदेमंद भी होते हैं| पर जो सवाल अक्सर हमारे मन में उठाते हैं वह है कि क्या धूप के साथ कपूर आरती करना भी जरुरी है? तो यहाँ पर एक बात समझ ना होगा कि अगर आप धूप और दीप से आरती कर रहे हैं तो आपको अलग से कपूर आरती करने कि कोई जरुरत नहीं है पर अगर आप धूप और दीप से अलग से आरती नहीं कर पा रहे हैं तो तो केवल कपूर से ही आरती कर सकते हैं| कपूर को धूप और दीप आरती के एकत्र प्रतिक मन जाता है जो कि दीप कि तरह प्रकाश भी देना हैं और धूप की काढ़ा सुगन्ध भी देना है| बहुत से जगह पंच आरती के भीतर भी कपूर आरती भी की जाती है, तो अगर आप चाहे तो आप इस तरह स...

क्या आरती करने के बाद आरती भगवान को देना चाहिए [aarti ke bad aarti bhagwan ko dena cahiye ya nahi]

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बहुत सारे लोग आरती करने के बाद आरती भगवान को पहले चढ़ाते हैं और उसके बाद ही खुद आरती लेते हैं| पर यहाँ पर एक बात समझना बहुत ही जरुरी है कि जब हम आरती करते हैं तो एक तरह से हम धूप -दीप नैवेद्य के तरह चढ़ाते हैं और चढ़ाने के बाद वह भगवान के लिए झूठन हो जाता है और हमारे लिए अमृत हो जाता है| इसलिए जो चढ़ाया जाते हैं उसे अगर आप फिरसे भगवान को ही चढ़ाते हैं तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है| हम सोचते हैं कि केवल खाने की चीजें और जो पानार्थ जल हम प्रदान करते हैं वही केवल प्रसाद होता है पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है भगवान को चढ़ाया गया हर वस्तु ही प्रसाद होता है, धूप-दीप भी आरती के लिए जो चढ़ाया जाता है वह नैवेद्य की तरह निवेदन के बाद प्रसाद ही हो जाता है| इसलिए धूप दीप से जब हम आरती करते हैं तो वह आरती के रूप में हम नैवेद्य भगवान को चढ़ाते हैं जो कि चढ़ाने बाद आरती प्रसाद हो जाता है इसलिए आरती के बाद कभी भी धूप-दीप के ताप भगवान को नहीं देना चाहिए उसे अपने और मौजूद सब के सिर पर ही लेना चाहिए| 

शिवरात्रि पूजा और व्रत में हवन धूप क्यों जलाय और कैसे [Shivratri Hawan Dhoop Puja]

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सबसे पहले यहाँ पर एक बात समझना बहुत जरुरी है की शिवरात्रि पूजा और शिवरात्रि व्रत दोनों अलग है| अगर आप संध्या के समय धूप अर्चन या फिर पंचोपचार से पूजा करके आरती करते हैं तो उसे शिवरात्रि पूजा माना जायेगा| शिवरात्रि व्रत चार प्रहर में करनी होती है| शिवरात्रि पूजा और व्रत दोनों में ही आप धुनुची में हवन धूप जला सकते हैं| आप घर पे पूजा कर रहे हैं इसलिए इस बात का खास ख़याल रखे की इसमें जो धुनुची आप उपयोग करेंगे वह पीतल से ही बनी होनी चाहिए नाकि मिटटी से बनी| घर पे धूप जलाने के लिए हमेशा ही पीतल के धुनुची ही इस्तेमाल करना चाहिए| धूप हवन करने के लिए धूप से ही आहुति देनी होती है जिसके लिए धूना, गुग्गुल और घी आहुति देना होता है और धूप जलाने के लिए कपूर का उपयोग करना होता है| अगर आप चाहे तो बाजार में मिलनेवाले हवन सामग्री भी लेकर हावव धूप जला सकते हैं| हवन धूप के लिए एक धुनुची आप रखे जिसे आप धूप निवेदन मंत्र के साथ भगवान शिव और माता पार्वती को निवेदन करोगे और साथ ही आरती के धूप अलग से रखे जिसमे धूप, गुग्गुल से आप आरती करोगे| हवन धूप जब आप जलाय तो उसमें कम से कम सात बार या फिर ग्यारह बार धूप आहु...

बाबा विश्वनाथ की सप्तऋषि संध्या आरती [Baba Vishwanath Saptarishi Sandhya Aarti]

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भगवान शिव के बारह  ज्योतिर्लिंग में बाबा विश्वनाथ को सबसे भोले भंडारी मन गया है, इसका मतलब यही की यहाँ पर पूजा के लिए बहुत कुछ सामग्री की जरुरत नहीं है अगर कुछ जरुरत होती है तो वह होता हैं भावना| भगवान शिव न तो बहुत कुछ चीजों के भोग लगते हैं न ही बहुत कुछ उन्हें चाहिए होता है आप जो भी उन्हें प्रेम के साथ अर्पण कर दो वही उन्हें स्वीकार होता हर कहें वह एक लोटा जल हो एक बिल्वपत्र हो या धतूरे का एक फूल ही क्यों न हो| पर आज हम आपको यहाँ पर भगवान भोले नाथ कशी विश्वनाथ शिव की उस भव्य आरती के बारे में बताएँगे जो देखने की इच्छा हर शिव भक्त अपने मन में रखता ही है| आज विस्तार से आप सभी के लिए बाबा विश्वनाथ की सप्तऋषि आरती के बारे में बर्णन करते हैं| सप्तऋषि आरती रोज काशी विश्वनाथ मंदिर में शाम को 7.00 बजे से 8.15 मिनट के मध्य में किया जाता है| इसमें सात शास्त्री पुरोहित मिलकर बाबा की आरती करते हैं इसलिए इसे सप्तऋषि आरती कहा जाता है| इस आरती से पहले पुरे मंदिर को जल से धोकर साफ किया जाता है और साथ ही बाबा महादेव को भी जल से अभिषेक कराया जाता है| इसके बाद नारियल फोड़ कर आरती की शुभारम्भ होत...