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जन्माष्टमी विशेष : श्री गोविन्द देवजी आरती, जयपुर [Govind Devji ki Aarti]

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जयपुर की असली राजा श्री गोविन्द देवजी ही है राजपरिवार के प्रधान मात्रा उनके प्रतिनिधि हैं| अगर आप इस मंदिर की विशेषता को खोजेंगे तो आप पीएंगे कि यहाँ मूल पूजा आरती ही है जो दिन में सातबार किया जाता है| यहाँ पर आरती को झांकी भी कहा जाता है जैसे मंगल आरती को मंगल झांकी धूप आरती को धूप झांकी ऐसे| भोर साढ़े चार बजे श्री गोविंद देवजी और राधारानी की मंगल आरती की जाती है यह आरती पांच बजे तक होती है| इसके बाद सुबह ७.३० से ८.४५ कि मध्य में होती है धूप आरती| धूप आरती के बाद मंदिर भक्तो के लिए खुला रहता है, इसके बाद सुबह नौ बजे से १०.१५ तक होता है गोविन्द देवजी की श्रृंगार आरती| इसके बाद भी दर्शन के लिए ठाकुरजी के दरवार खुले रहते हैं| करीब ११ बजे ठाकुरजी को राजभोग लगाकर भोग आरती की जाती है| इसके बाद दोपहर के समय बिश्राम के लिए ठाकुरजी के मंदिर के कपट बंद कर दिए जाते हैं और शाम को ५.४५ पर गावयाल आरती के साथ मंदिर खुलती है| इसके बाद शाम ६.४५ मिटिट से आठ बजे के बिच ठाकुरजी की संध्या आरती की जाती है| कहते हैं ठाकुरजी की इस आरती को देखकर संसार के सारे मोह को भूलकर बस गोविन्द नाम में सराबोर हो जाते ...

जन्माष्टमी विशेष: बांके बिहारी आरती, वृन्दावन [Banke Bihariji ki Aarti]

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कहते हैं बांके बिहारी लाल प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं जिसने भी उनको एकबार देख लिया वह उनके मोह में मोह ही जाते हैं| इसलिए तो ठाकुरजी के दर्शन के समय पर्दा गिराकर दर्शन करवाई जाती है ताकि उनसे कोई मह न लगा बैठे और वह उस भक्त के प्रेम के साथ ही न चले जाये| अगर आप कभी वृन्दावन गए हैं और बांके बिहारी लाल की दर्शन की है तो आपको पता चलेगा कि क्या होता हैं उनके आरती के रंग| बांके बिहारी  मंदिर की सबसे खास बट यही है कि आरती के समय कोई शंख या घंटा ध्वनि वह नहीं कि जाती हैं केवल राधा नाम के साथ ही आरती की जाती है|  सुबह मंगल आरती के बाद आठ बजे मंदिर खोजी जाती हैं और इस समय बांके बिहारी लाल की श्रृंगार आरती होती है| इसके बाद दोपहर १२ बजे राजभोग लगाकर की जाती है बांके बिहारी लाल की भोग आरती| इसके कुछ देर बाद लल्ला को बिश्राम करने के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है और संध्या कालीन दर्शन के लिए शाम ५ बजे से रत के नौ बजे तक मंदिर खुले रहते हैं| इस दौरान ठाकुरजी की संध्या आरती की जाती है और मंदिर बंद होने के समय की जाती है शयन आरती|  जन्माष्टमी पर बांके बिहारी मंदिर में एकबार ही ज...

श्री कृष्ण मुरारी की आरती संगीत [ShreeKrishna Aarti Song]

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला। श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला। गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली। लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की॥ कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं। गगन सों सुमन रासि बरसै। बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की॥ जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा। स्मरन ते होत मोह भंगा बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की॥ चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू। चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद टेर सुन दीन दुखारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

जन्माष्टमी भोग : नारियल लड्डू [Nariyal Ladoo]

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वैसे तो नारियल लड्डू हर पूजा के लिए ही आप इस्तेमाल कर सकते हो पर अगर आप जन्माष्टमी के लिए नारियल लड्डू बना रहें है तो गुड़ वाले नारियल लड्डू से ज्यादा चिनिवाले नारियल लड्डू ही ज्यादा अच्छी होती है| आप कहें तो इसे मिश्री के साथ भी बना सकते हैं पर उसके लिए मिश्री को बहुत अच्छी तरह से गाढ़ा कर उबाल ले| और जब भी अब प्रसाद बना रहे हैं तो आप कोशिश करें कि उसे पीतल के कोई बर्तन में ही बनाने की| तो आइये जानते हैं नारियल लड्डू ता नाड़ु बनाने के तरीके| पहले ही बता दे यह आप चाहे तो गुड़ के ही लड्डू बना सकते हैं और कहें तो चीनी के नारियल लड्डू पर यह कोई सोचने की विषय नहीं है जिस तरह का भोग आपको चढ़ाने का मन हो आप वही चढ़ाया कीजिये| पाहे एक पीतल के कड़ाई ले लीजिए और नारियल को बहुत ही बारीकी से कद्दूकस कर लीजिये| अगर आप चाहे तो नारियल के साथ चीनी और गुड़ मिलकर फिर उसे कड़ाई में डालकर अच्छे से पका सकते हैं या फिर कड़ाई में थोड़ा सा पानी लेकर उसमें चीनी ले ले या फिर गुड़ ले ले यह रखे अगर आप एक कप चीनी लेते हैं तो आधे कप से भी कम पानी उसमें डेल और गुड़ के बारे में भी यही करें| जब चीनी अच्छे से उबाल जाये और है...

श्रीकृष्ण और राधारानी की धूप सेवा आरती कैसे करें [Dhoop Aarti of Lord Krishna and Radharani]

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कृष्ण पूजन हो या फिर कोई भी पूजा उसके लिए धूप सेवा और आरती बहुत ही खास होती है | पर बहुत से लोग इस बारे में उतना नहीं जनताए इसलिए इसे पूजा पद्धति के रूप में कर नहीं पते हैं | आज हमारे पास समय बहुत ही कम है जिस कारण बहुत से सामग्री से पूजा आरती करना बहुत मुशकिल हो गया है , पर ऐसे कई सारे तरीके और पद्धति हैं जिसके जरिये आप सरल और आसान तरीके से ही आरती कर सकते हैं और यह सम्पूर्ण पूजा भी होती है | धूप सेवा आरती भी ठीक ऐसी ही एक पूजा पद्धति है | अगर आप जन्माष्टमी के दिन धूप सेवा आरती कर रहें हैं तो उसके लिए दो धूपपात्र या धुनुची ले ले और अगर आप रोज की पूजा में श्री राधा कृष्ण के धूप सेवा आरती करना चाहते हैं तो उसके लिए आप एक ही धुनुची में धूप जला सकते हैं | धूप आरती के लिए बहुत से सामग्री की जरुरत नहीं होती है बस धूप यानि धूना , गुग्गुल और कपूर ले ले साथ आरती दीपक जलने के लिए घी या तिल के तेल | श्री कृष्ण और राधारानी को चढ़ाने के लिए फूल , चन्दन और तुलसी , अक्षत | अगर आप जन्मास्टमी के दिन यह पूजा कर रहे हैं तो शाम के समय कीजिये और अगर आम दिनों में ही कर रहे हैं तो दिन में दोबार यानि...

श्री कृष्ण को भोग में क्या क्या चढ़ाय [Bhog for krishna]

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वैसे को हम जानते हैं कि श्री गोपाल को माखन चोर कहा जाता हैं और इसलिए हम ज्यादातर माखन और मिश्री ही गोपालजी को भोग में चढ़ाते हैं | पर अगर हम जन्माष्टमी के दिन भोग चढ़ाने की बात करें तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए की हम भोग बिलकुल उसी तरह से चढ़ाय जैसे हम अपने घर के एक बच्चे के लिए करते हैं जैसे खिचड़ी , हलवा , लड्डू , खीर , बतासा , रसमलाई , राबड़ी जैसे खास चीजे | यह बच्चों को खाने में बहुत ही पसंद होता हैं और बल गोपाल जी को भी | उन्हें एक बचा समझ कर ही आप भोग चढ़ाय नाकि सिर्फ पूजा कर रहें हैं इसलिए | वैसे अगर आपके पास भोग बनाने की सुबिधा नहीं है और आप नहीं चढ़ा सकते हैं तो तुलसी , जल और पंचामृत जरूर चढ़ाय | अगर आप राजभोग यानि कि छप्पन भोग भगवान को चढ़ाना चाहते हैं जन्माष्टमी या नंदोत्सव पर तो उसके लिए आप पीतल के कड़ाई और काठ से बने कलछी से ही ही भोग बनाय , हो सके तो रोज जहाँ आप खाना बनाते हैं वह न बनाय और भोग बनाने से पहले उस जगह पे धुप जरूर कर ले | अगर आप अपने रसोई में ही भोग बनाते हैं तो उससे एक अलग गंध होती है जो भी पूजा में एक आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाय रखने में सही नहीं होता है | भोग ब...

जन्माष्टमी के लिए पूजा साम्रग्री [Janmashtami Puja items]

जन्माष्टमी में वैसे तो बहुत सारे सामग्री की जरुरत नहीं होती है उसके लिए जो जरुरी होता है वह है अपने ठाकुरजी के लिए प्रेम और उन्हें बस दिन भर निहारना पर क्यों के साल में एकबार ही जन्माष्टमी आती है तो हम सब चाहते हैं की अपने ठाकुरजी की आरती और पूजा थोड़ी सही तरीके से करें| इसके लिए आइये जन लेते हैं किन किन पूजा सामग्री और उपकरण हम आरती और पूजा के लिए लेंगे|  अभिषेक के लिए - दूध, घी, सहद, दही, मिश्री, गंगा जल, तुलसी जल, चन्दन जल, शंख जल, कच्चे नारियल जल| अगर आपके पास गंगा जल मौजूद नहीं है तो आप केवल तुलसीजल का उपयोग कर सकते हैं| अभिषेक स्नान के बाद स्वच्छ जल से स्नान जरूर कराय और पवित्र वस्त्र पोछ ले| पंचोपचार पूजा के लिए - चन्दन (हरि चन्दन), पीले रंग के फूल, अक्षत, धूप, दीप|  श्रृंगार के लिए - पीला वस्त्र, फूल के गहने, मोरपंख, कमल के फूल, फूल माला, तुलसी माला| अगर आप राधारानी और श्री कृष्ण के पूजा एक साथ कर रहें तो राधारानी के लिए नील वस्त्र रखें या फिर पीला वस्त्र ही रखे लाल वस्त्र न रखे| जन्माष्टमी वैष्णव पूजा होती हैं मुख्यत इसलिए इसमें लाल रंग के वस्त्र इस्तेमाल न...

वैष्णव मत से ऐसे मनाय श्री कृष्ण जन्माष्टमी [Vaishnav Janmasthami]

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वैसे तो जन्माष्टमी पुरे भारत भर में अलग अलग तरह से मनाई जाती है पर इसके सबसे सुन्दर और सही तरीका आपको वैष्णव मत में ही देखने को मिलेंगे जो की वृन्दावन , मथुरा और जयपुर में विशेष रूप से मनाई जाती है | श्री कृष्ण के जन्म वैसे तो मध्य रात्रि को होती है और उसी समय उनकी आरती की जाती है पर गोस्वामी मत के कई संप्रदाय में कृष्ण जन्म सुबह के समय ही मनाया जाता है | यह चलन वृन्दावन में बहुत प्रचलित है | पुरे दिन भर श्री कृष्ण को धूप डीप जलाकर आरती करने के साथ साथ कई तरह के पकवान , मिठाई भोग लगाया जाता है | जैसे एक नया बचा जन्म लेके के बाद उसे अच्छे से नहलाया जाता ह्या उसे सुन्दर से रखा जाता है ताकि उन्हें कोई समस्या न हो बिलकुल उसी तरह से ही श्री कृष्ण की अभिषेक और आरती की जाती है दिनभर |   वैष्णव पूजा के नियम से जो लोग जन्माष्टमी मानते हैं वह सुबह सुबह ठाकुरजी की आरती करके दिन में उत्सव की शुरुवात करते हैं | आपको यहाँ पर यह जानकारी भी होना चाहिए की कई वैष्णव मत से मनाय जानेवाली जन्माष्टमी नंदोत्सव के दिन ही मनाई जाती है | क्यों के यह दिन कृष्ण के जन्म के उत्सव मनाने के लिए सबसे सही...

गुग्गुल धूप [Guggul]

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गुग्गुल एक वृक्ष है| इससे मिलनेवाले राल जैसे पदार्थ को 'गुग्गल' कहा जाता है जिसे धुप करने में इस्तेमाल किया जाता है| अगर भारत की बात करें तो भारत में इस जाति के दो प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं| यह भारत के कर्नाटक, राजस्‍थान, गुजरात तथा मध्य प्रदेश राज्‍यों में उगता है। कुछ कुछ जगह से प्राप्त गुग्गुल का रंग पीलापन लिए श्वेत तथा अन्य कई जगह का गहरा लाल होता है| इसमें मीठी सी एक महक रहती है जिसको अग्नि में जलाने पर यह जगह सुंगध से भर जाता है| इसलिये इसे धूप के रूप में व्यव्हार किया जाता है|  अष्टांग से लेकर षोडशांग सारे धूप में ही आपको गुग्गुल के बारे में जानकारी मिलेगा| कहा जाता है धूना, गुग्गुल, कपूर एकसाथ जलाना धूप आरती के लिए सबसे उत्कृष्ट होता है| यह एक सुन्दर सी गंध आपके आसपास बना देती है और साथ ही बातावरण को शुद्ध कर देती है| आप जब भी धूप जलाय तब तब अपने घर के खिड़की और दरवाजे जरूर खुले हुए ही रखे इससे इसके धुआँ बाहर निकल जाएगी और साथ ही एक सुन्दर ही खुशबू आपके पूरी घर में रह जाती है| हो सके तो आप सुबह और शाम दोनों समय गुग्गुल से धूप करें और विशेष पूजा के दिन भी आरती...

राल/ धूना/ रेज़िन [Resin]

राल धूना ऐसे कई सारे नाम आपको मिलेंगे जो कि प्राकृतिक धूप का ही नाम है| इसे इंग्लिश में रेज़िन कहा जाता है| संस्कृत में इसे 'निर्यास' कहा गया है जो किसी पेड़ों के छाल से मिलनेवाला गोंद होता है| इसे प्राकृतिक धूप भी कहा जाता है जो धूप करने और आरती के समय जलाय जाते हैं| धुनुची में नारियल के छिलके, धूना, गुग्गुल के साथ जलाई जाती है| सरल के पेड़ों से भी धूना पाई जाती है साथ ही 'अराल' और 'द्रुमामय' भी रेज़िन के लिए प्रयोग होते हैं| पूजा के लिए शाल पेड़ का धूना ही जलाय जाते हैं ज्यादातर| इसका उपयोग पुरे देश भर में किया जाता है पर यह बंगाल, बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है| अगर आप बंगाल, बिहार या उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में जायेंगे तो वह के कोई भी पूजा हो उत्सव हो या फिर रोज की आरती हो उसमे आपको इसके इस्तेमाल जरूर दिखाई देंगे| दुर्गापूजा के समय यह खास कर इस्तेमाल किया जाता है जो कि एक बहुत ही विशेष आरती होती है और कुछ जगह पर धूना आरती नृत्य या धुनुची आरती नृत्य भी आयोजन किये जाते हैं जैसे गुजरात में गरबा नृत्य| यह दोनों भी माँ ...

पंचप्रदीप/आरती दिया [panchapredeep]

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पंचप्रदीप आरती के लिए इस्तेमाल होने वाले मुख्य पात्र है जिसे आरती दिया भी कहा जाता है, जो घी या तेल की बाती लगाकर जलाई जाती है| यह पीतल और चांदी के बने हुए होते हैं पर और पांच, सात, इक्कीस, अट्ठाइस या इक्यावन बातीवाले होते हैं| जैसे बनारस में आरती के लिए जो दीपका इस्तेमाल किये जाते हैं वो इक्यावन बाती के ही होते हैं| पर घर के आरती के लिए हम पांच दीपक के पंचप्रदीप ही इस्तेमाल करते हैं| बहुत से लोग मिटटी के दीपक से भी आरती करते हैं या फिर पंचमुखी पीतल के दीप थालीपर रखकर जलाई जाती है और आरती की जाती हैं| अगर कोई इस तरह से आरती के दीपक इस्तेमाल करना चाहे तो भी कर सकता है उस में कोई समस्या तो नहीं है पर आजकल बाजार में कई तरह के अच्छे पीतल और काठ के हैंडल वाले पंचप्रदीप मिल जाते हैं और ऑनलाइन शॉप में भी उपलब्ध है अभी तो| इसलिए अगर आप आरती के लिए पंचप्रदीप लेंगे तो यह हैंडल वाले पांच या सात दीपकापवाले आरती दिया ही ले| बहुत से एक दीपक भी बाजार में आपको मिल जायेगा जो ही आरती के लिए ही हैंडलवाले एक दीपक है| पर अगर आप आरती दीपक खरीदेंगे ही तो आपको पांच बत्तीवाले दीपक ही लेना चाहिए| यह आरती के...

पीतल धुनाची / धुनुची [Dhunachi]

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धुनाची, धुनुची  या धूप पात्र कहा जाता है इसे| यह वैसे तो पुरे भारत में ही इस्तेमाल होता है अलग अलग तरह से पर पूर्व भारत के पूजा अर्चना में धूप देने कि परंपरा में इसकी इस्तेमाल बहुत ही ज़्यादा है| धुनाची पीतल और मिटटी से बनाई जाती है कभी कभी यह चांदी से भी बनाई जाती है पर पीतल के धुनाची ही ज़्यादा इस्तेमाल कि जाती है| भाषा के अंतर में इसे धुनाची या धूनची कहा जाता है जिसका मतलब है कि धूना देने की पात्र| धूना शाल बृक्ष का गोंद होता है जिसे हम प्राकृतिक धूप के रूप में इस्तेमाल करते हैं| बंगाल में इसे नारियल के सूखे खोल यानि छिलके से जलाई जाती है और धूना, गुग्गूल से जलाई जाती है जिससे सुगन्धित धुंआ होता है| उत्तर भारत में कुछ जगह इसे गाये के गोबर से बने कंडे से भी जलाई जाती है| यह पूरी तरह से प्राकृतिक धूप से और इसके धुंआ से हमारे शरीर को किसी प्रकार हानि होने की आशंका काफी कम होती है| किसी भी पूजा में धुनाची आरती यानि धूप आरती करने की परंपरा है, यह प्राकृतिक धूप जलाने से पूजा के बातावरण शुद्ध और मन पवित्र हो जाता है| धूप दीप आरती एक प्राचीन परंपरा है जिसमे धुनाची इस्तेमाल किया जाता...

आरती में इस्तेमाल होनेवाले कुछ पात्र [Some vessel for aarti]

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वैसे तो आरती के लिए सबसे ज्यादा जरुरी होता है धूप और दीप पात्र| जिसे धुनुची और पंचप्रदीप भी कहते हैं| पर अगर आप सही से आरती करना कहते हैं पुरे विधि विधान के साथ तो कुछ और पात्र भी जरुरी होता है| जरुरी नहीं कि इनमे से सारे पात्र आप उपयोग करे पर अगर आप किसी अनुष्ठानिक पूजा कर रहे हैं तो आपके पूजा को सुन्दर बनाने के लिए यह सारे चीजें बहुत ही जरुरी है| आइये जान ले आरती के ऐसे हे इस्तेमाल होनेवाले पात्र के बारे में| १. धुनुची/धूपदान :- धुनुची जिसे धूपदान भी कहना जाता है आरती में धूप जलने और साथ ही धूप आरती करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है| यह पीतल के ही होते हैं ज्यादातर पर कुछ जगह चांदी के धुनुची भी इस्तेमाल किये जाते हैं आरती के लिए पर पीतल के धुनुची को सबसे सही और उत्तम माना गया है आरती के लिए| २. पंचप्रदीप :- आरती के लिए कम से कम पांच बत्ती या फिर सात बत्ती दीपदान होना जरुरी ही होती है| ज्यादातर बाजार में मिलनेवाले आरती दीपदान पांचबत्ती वाले पंचप्रदीप ही है| अगर आप किसी बड़े आयोजन में आरती करना चाहते हैं तो आप इक्कीस दीपक वाले दीपदान भी ले सकते हैं| यह पीतल चांदी और ताम्ब...

अट्ठाइस दीपक जलाकर करें शिवजी और माता पार्वती की आरती पूजा [Monday puja with 28 diyas]

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सावन के आखरी सोमवार वैसे तो आप हर दिन की तरह ही शिवपूजा कर सकते हैं, जिसमे जलाभिषेक, पुष्प, चन्दन, धूप, दीप और साथ में कुछ प्रसाद के रूप में चढ़ा सकते हैं| पर अगर अपने पुरे सावन सोमवार की पूजा सम्पूर्ण निष्ठा से सम्पूर्ण की  हैं तो आखरी सोमवार को १०८ या २८ दीपक जलाकर आरती जरूर करें| किस तरह से करें यह पूजा आरती निचे जाने विस्तार से| एक बार ध्यान रखें की दीपक आप संध्या आरती के समय ही जलाय सुबह के समय सामान्य पूजा ही करें| शिवपूजा रात्रि में ज्यादा फलदायी कहाँ गया है इसलिए संध्या पूजन तथा आरती के समय ही दीपमालाय जलाय| संध्या के समय धूप से अर्चन करें पहले और फिर बिल्वपत्र और सचन्दन पुष्प से पुष्पांजलि प्रदान करें| अब आरती के पात्र में धूप और पांच बाती जलाकर उसे श्री विश्वनाथ और माता पार्वती को निवेदन कर ले| और उसके साथ ही १०८, २८ या कम से कम २१ मिटटी के दीपक जलाकर उसे निवेदन करते हुए कहें "एष अष्टबिंशति ( २८)  दीपमालाय ॐ शिवाय नमः" | इसी तरह माँ गौरी को भी दीपमालाय निवेदन करें| इसके बाद धूप से और फिर पंचप्रदीप से निवेदन करें| अगर आप दीपमालाय घी से जला पाए तो बहुत ही अच्छा ...

भारत के कुछ प्रसिद्ध आरती जो दुनिया भर में जाने जाते हैं [Some famous Aarti of India list]

वैसे तो भारत में हर मंदिर घर पे आरती की एक सुन्दर परंपरा है पर ऐसे कुछ आरती है जिन्हे देखने सिर्फ देश भर से ही नहीं विदेश से भी लोग आते रहते हैं| आइये ऐसे ही कुछ आरती के सूची जानते हैं निचे- १. बनारस गंगा आरती, राजेंद्रप्रसाद घाट, दशाश्वमेध घाट, वाराणसी, उत्तरप्रदेश  २. श्री विश्वनाथ आरती, वाराणसी, उत्तरप्रदेश  ३. माँ अन्नपूर्णा आरती, वाराणसी, उतरप्रदेश  ४. दक्षिणेश्वर काली बाड़ी आरती, कोलकाता, पश्चिम बंगाल  ५. कालीघाट मंदिर आरती, कोलकाता, पश्चिम बंगाल  ७. रानी रासमणि परिवार की दुर्गापूजा आरती, कोलकाता, पश्चिम बंगाल  ८. श्री सिद्धि विनायक आरती, मुंबई, महाराष्ट्र  ९. श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति आरती, पूणा, महाराष्ट्र  १०. महालक्ष्मी मंदिर आरती, कोल्हापुर, महाराष्ट्र  ११. द्वारिकाधीश मंदिर आरती,  द्वारका, गुजरात  १२. सोमनाथ मंदिर आरती, वेरावल, सौराष्ट्र गुजरात १३. श्री गोविन्द देवजी मंदिर, जयपुर, राजस्थान  १४. श्री बांके बिहारी मंदिर, वृन्दावन, उत्तरप्रदेश  १५. श्री राधारमण मंदिर, वृन्दावन, उत्तरप्रदेश  ...

क्यों करते हैं पूजा के बाद आरती? अगर नहीं जानते तो जान ले इसके कारण [Why do the aarti after worship]

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वैसे तो हम रोज घर पे पूजा करते हैं और साथ में आरती भी करते ही है| पर कभी अपने सोचा है की रोज आरती करने का क्या क्या फायदा हमारे रोज के दिनचर्या पर पड़ता है| पूजा चाहे छोटा हो या बड़ा हो आरती के बिना उस पूजा को सम्पूर्ण नहीं माना जाता है, पर आरती करने के कारण हम में से बहुत काम लोगों को ही पता है| आइये आज जानते हैं आरती करने के कुछ कारण- आरती में घी, सरसो का तेल. टिल का तेल इस्तेमाल किया जाता है जो की पूरी तरह से प्राकृतिक होती हैं और आसानी से मिल भी जाती है| घी गाय के दूध से बना हुआ होता है जब इसे रुई की बाती से जलाई जाती हैं तो घी और प्राकृतिक तेल से एक बहुत ही अच्छी खुशबू आती है| साथ में आरती के लिए धूप भी जताई जाती हैं धुनुची धूप जिसे कहते हैं| पीतल के धुनुची में जब आप धूप जलता हैं राल यानि धूना और गुग्गुल के साथ तो उसका सुगंध चारो ओर फैल जाता है जो एक आध्यात्मिक बातावरण बन जाता है| धूप के सुगंध हमें पूजा में एकाग्र होने में ओर मन को शांत रखने में मदत करता हैं| धूप दीप की यह सुगंध हमारे मन से ओर साथ ही घर में साडी नकारात्मक भावना ओर ऊर्जा को बाहर निकलता हैं ओर साथ ही मन में ओर...

आरती दीये के लिए रुई की बाती [Cotton wick for Aarti diya]

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आरती के लिए हमेशा ही रुई की बाती चाहिए होती है जो की आजकल बाजार में भी आसानी से मिल जाती है पर अगर आप घर पे बाती बनाएंगे तो आपके दीये के लिए सबसे ज्यादा सही होता है| वैसे तो बाती दो तरह के होते हैं एक लम्बेवाले बाती जो अक्सर तेल के दीये में इस्तेमाल होता है और एक आरती के दीये के लिए घी वाली बाती| वैसे घी के लिए बाती जो बनाए जाते हैं वो आप तेल से भी इस्तेमाल कर सकते हैं| सबसे पहले बाजार से सही और अच्छी रुई लेकर आइए जो की आपको किसी भी पूजा भंडार में मिल सकता है| रुई को लम्बे मात्रा में ले लें और अपने दोनों हतेली से उसे पकाके यानि मोड़के अच्छे से लम्बेवाली बाती बना लें| अब आरती दीये के लिए बाती बनाना है तो पहले पर्याप्त मात्रा में रुई ले लें और फिर उसे पुरा गोलाकार में फैला ले जैसे मोदक बनाते समय हम आटे को गोलाकार में फैलते हैं अब उसे मोदक की आकार में  ही अच्छे से मोड़के के जोड़ दे और ऐसे ही दूसरे आरती के बाती बना ले| बाती दीये के प्रकार के हिसाब से छोटे या बड़े बनाया जा सकता है| अगर आप एक साथ बहुत ज्यादा बाती बनाके रखेंगे तो यह आपके पूजा के समय अलग से बनाने की जरुरत नहीं होती| वैसे...

गुरुवार की लक्ष्मीनारायण पूजा आरती [ Lakshminarayan Puja Aarti ]

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गुरुवार हम हर घर पे ही लक्ष्मीनारायण की पूजा आरती करते हैं और साथ में आरती भी| आइये जान लेते हैं कि किस तरह से घरपे सहज तरीके से करें श्री लक्ष्मीनारायण जी की आरती पूजा| सबसे पहले अगर आपके घर पे लक्ष्मीनारायण की मूर्ति हैं तो आप उनमे ही पूजा आरती कर सकते हैं पर अगर आपके घर मूर्ति प्रतिष्ठित नहीं है तो आप लक्ष्मीनारायण की छवि में भी आरती कर सकते हैं| एक चौकी या घरपे एक छोटा सा मंदिर बना ले जो जहा पर आप मूर्ति या छवि रखकर आरती कर सकते हैं| लक्ष्मीनारायण पूजा वैष्णव मत में भी की जाती है इसलिए मंदिर या चौकी पर पीला कपड़ा ही बिछाय नाकि लाल या किसी और रंग का कपड़ा| पूजा में भी पिले रंग का फूल ही इस्तेमाल करें| चौकी और मंदिर में रखे मूर्ति या छवि को अच्छे से फूल से सजाय और माला भी पहनाए| आप पूजा के लिए एक पुष्पपात्र यानि थाली में चन्दन, फूल, अक्षत, तुलसीदल रख ले अगर आपको कमल का फूल मिलता है तो वह भी आप थाली में जरूर रखें| अब घट स्थापना करें, घाट स्थापना के लिए एक पीतल या ताम्बे की कलश को जलपूर्ण कर ले और उसमे सिंदूर से स्वस्तिक का चिन्ह बनाय और आम के पत्ते नारियल से घट को सही जगह पर रखे| ...

कैसे करें मंगलवार के दिन हनुमान जी की आरती [ Tuseday Hanumanji Aarti ]

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सबसे पहले तो यह जानना बहुत ही जरुरी है जी अगर आप मंगलवार के दिन हनुमानजी की पूजा या आरती करते हैं तो आपको श्री रामजी की पूजा भी करना ही चाहिए तभी हनुमानजी की पूजा और आरती संपन्न होती है| हनुमान जी को सिंदूर बहुत ही प्रिय है इसलिए उनके पूजा में सिंदूर जरूर इस्तेमाल करें और साथ में अगर आप भोग के रूप में कुछ चढ़ाना चाहते हैं तो उसमे फल ही भगवान को भोग के रूप में चढ़ाय| अगर आपके घर श्री राम, सीताजी और हनुमानजी की मूर्ति पहले से ही स्थापित है तो आप वही पूजा करले और आरती भी करें पर अगर आपके घर मूर्ति स्थापित नहीं है तो आप एक चौकि पर श्री रामजी के सतह हनुमानजी की फोटो ले लें और फूल, माला, चन्दन से उनका श्रृंगार करें| पहले श्री रामजी और सीता माता को अक्षत, पुष्प और चन्दन चढ़ाय फिर हनुमानजी को| अब धूप और दीप निवेदन करें| और फिर अगर अब फल या मिठाई भोग लगा रहें हे तो वो भी चढ़ाय| उसके बाद धुनुची और सरसो तेल के पंचप्रदीप लेकर आरती करें| अब एक थाली में सिंदूर, चन्दन और तुलसी रखकर वहा आरती के धूप-दीप रखें और फिर सबको प्रसाद के रूप में आरती दे| आरती के धूप पुरे घर पे भी दिखा दे| आरती करते समय शंखनाद ...

सावन में महादेव और माता पार्वती की करें धूप आरती [ Shiv Parvati Dhoop Aarti ]

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कहते हैं धूप सबसे शुद्ध और सही उपकरण होता है पूजा के लिए| इसलिए अगर आप कभी भी पूजा करें तो धूप जरूर करें और साथ में धूप आरती भी करें| धूप से आरती करने के बाद ही हमेशा घी के पंचप्रदीप जलाकर आरती करें| आरती एक ऐसी प्रक्रिया है जो कोई भी कर सकता है उसके लिए कोई मंत्र या दीक्षा की जरुरत नहीं होती है| सावन में कई तरह के शिव पूजा विधि प्रचलित है और बहुत से भक्त मंदिर में जाकर भी जलाभिषेक करते हैं| पर हर किसी के लिए यह संभव नहीं होता है वो भी भगवन शिव और माता पार्वती की धूप आरती करके उनके आशीर्वाद पा सकते हैं| कहते हैं भगवन शिव आशुतोष हैं इसलिए उन्हें कुछ भी चढ़ाने से वह प्रसन्न हो जाते हैं| धूप का मतलब होता हैं हमारे सारे अहंकार, लोभ, कर्म, अकर्म शुद्ध अग्नि में विसर्जित करके अपने अपने आपको वैराग्य भावना से पवित्र करता, जैसे धूप जलकर ही सुगन्धित करता है| धूप एक निराकार वस्तु का प्रतीक भी हैं जो यह सन्देश देता हैं ही दुनियामे हर भौतिक वस्तु नश्वर है| धूप आरती के लिए सबसे पहले भगवन भोलेनाथ और माता पार्वती की फोटो स्थापना करें और दो धुनुची प्रस्तुत करें एक विश्वनाथ के लिए और एक अन्नपूर्णा ...

सोमवार के संध्या कालीन आरती कैसे करें [ How to perform Monday evening Aarti ]

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सोमवार के संध्या कालीन आरती के लिए बहुत ज्यादा सामग्री की जरुरत नहीं होती है धूप, घी के दीपक और कपूर ही काफी होती है| आरती करने से पहले पुरे घर में धूप जरूर कर ले और उसके साथ जहा अपने सुबह शिव पार्वती पूजा किये थे उस स्थान को साफ कर लें सही से| धूप करने के बाद आचमनी पत्र में गंगा जल डालकर फिर आचमन करें और फिर पूजा तीनबार पुष्प और बिल्वपत्र देकर पुष्पांजलि प्रदान करें| इसके बाद कम से कम इक्कीस बार ॐ नमः शिवाय का जप करें और फिर आरती के धूप और दीप जलाकर उसे निवेदन कर और शंख बजाते हुए आरती शुरू करें| अगर आप शिव आरती जानते हैं तो उसे भी जरूर गाये| धूप, दीप से आरती करने के बाद ही कपूर से आरती करें और सबको प्रसाद स्वरुप आरती जरूर दे और खुद भी ग्रहण करें| आरती करते समय हमेशा पहले धूप से आरती करें और फिर दीप से| अगर आपके पास घी के दीपक नहीं हैं तो आप कपूर जलाकर भी आरती कर सकते हैं| नीचे सम्पूर्ण शिव आरती दिए जा रहे हैं जो आप आरती करते समय गा सकते हैं- जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥ एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसानन गरुड़ासन वृषवाह...