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इन इन तरीके से करें रोज की आराधना [Process of everyday puja]

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हम में से कई लोग होते हैं जो रोज पूजा और आरती करना चाहते हैं पर समय के कमी के कारण कई कर नहीं पाते हैं| रोज बहुत बड़ी या फिर बहुत से सामग्री के साथ पूजा करना आज के दिन में संभव नहीं है पर बहुत से आसान तरीके से यह पूजा की जा सकती है| आइये जानते हे ऐसे ही कुछ प्रक्रिया के बारे में 1. धूप और फूल से करें पूजा आजके हमारे भाग दौर के कारण बहुत से सामग्री से पूजा करना मुश्किल है पर धूप और फूल से आसानी से पूजा की जा सकती है| सिर्फ फूल और चन्दन से पूजा करें और धूप दिखाके आरती करें| 2. केवल आरती से करें पूजा ज्यादा समय न होने पर केवल आरती से भी पूजा समपूणर की जा सकती है| आरती को स्वयं सम्पूर्ण पूजा कही जाती है| धूप और डीप से आरती करना सबसे आसान आरती करना होता है पर अपने पूजा के हिसाव से कोई बी इसमें सामग्री जोड़ सकता है| 3. जल और पुष्प से आराधना करें समय के कमी के कारण सिर्फ जल और पुष्प अक्षत से पूजा कर सकते है और उसके बाद आरती जरर करनी चाहिए| भगवन को भोग लगाने की या फिर ऐसा कुछ समय अगर न हो तो परसदा के रूप में जल चढ़ाया जा सकता है| 4. पंचोपचार पूजा करें धूप, दीप, पुष्प, अक्षत और...

शयन आरती [Shayan Aarti]

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शयन आरती वह होता है जो भगवान को शयन देते समय किया जाता है| यह आरती बहुत संक्षिप्त होती है| इस आरती की विशेषता यही है की इसमें कभी भी शंख नहीं बजे जाती है जैसे मंगल आरती में शंख बजाकर भी भगवान को उथाय जाता है और फिर आरती की जाती है पर शयन आरती में किसी भी प्रकार की कोई वाद्य नहीं बजाय जाते हैं और खास कर शंख कभी भी नहीं क्यों के शंख जागरण ध्वनि होता है नाकि शयन की ध्वनि| बहुत से जहाज पर बस कप्पोर से ही शयन आरती की जाती है पर धूप-दीप से भी आप साहयण आरती कर सकते हैं| असल में संध्या आरती ही आरती दिन की संपन्न आरती होती है पर हम भगवान को जैसे नींद से उठाते हैं वैसे ही निद्रा लेने के लिए यानि विश्राम के लिए भी निवेदन करते हैं और यही होता है शयन आरती| शयन आरती को ही दिन के समाप्त आरती माना जाता है और फिर दूसरे दिन मंगल आरती से फिर से भगवान की दिनचर्या शुरू होती है|

संध्या आरती [Sandhya Aarti]

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सूर्य अस्त के बाद जो आरती होती है उसे संध्या आरती कहते हैं| सारे आरती में यह सबसे मनमोहक और संदर आरती होती है| यह पंच नीराजन पद्धति से की जाती है जैसे कि धूप, पंचप्रदीप, शंख पूर्ण जल, पुष्प और चामर यानि चँवर से| यह पंच उपाचार प्रधान होती है पर स्थान और नियम के अनुसार इसमें और भी उपाचार जोड़ा जा सकता है| इस समय घंटी और शंख बजे जाती है या फिर संध्या आरती बंदन के साथ भी यह आरती की जाती है| घरों में भी संध्या आरती और पूजा आरती ही प्रधान होती है| इस आरती को कई तरह के नामा से जाना जाता है जैसे संध्या आरती, संध्या पूजा आरती, संध्या श्रृंगार आरती, संध्या भोग आरती, संध्या धूप अर्चन आरती, संध्या धूप आरती पूजा, संध्या धूप-दीप अर्चन इत्यादि| संध्या आरती के समय सबसे पहले भगवान या इष्टदेव को धूप अर्पण करके अर्चन किया जाता है और धूप से सुगन्धित पवित्र धुंएँ से सराबोर होकर धूप से फिर घी के पंचप्रदीप से जलपूर्ण शंख से कमल या कुछ दूसरे पुष्प से इसके बाद मौर पंखा या चामर से आरती संपन्न होती है| सन्धाय आरती का समय देवता के साथ भगवान का मेल मिलाप का समय होता है पुरे दिन में यही एक समय होता है जब भक्त ...

श्रृंगार आरती [Shringar Aarti]

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श्रृंगार आरती भी एक तरह से धूप आरती ही होती है| संध्या आरती से पहले यानि संध्या बंदन से पहले जो श्रृंगार भगवान को करवाई जाती है और उसके साथ ही आरती की जाती है उसे श्रृंगार आरती कहते हैं| यह ज्यादातर मंदिर में ही होती है| श्रृंगार के लिए फूल माला से पहले सजाई जाती है और उसके बाद फिर धूप, दीप या कपूर से आरती करना चाहिए| इसे ही श्रृंगार आरती कहते हैं| पंच आरती क्रम में श्रृंगार आरती नहीं आती है पंचआरती क्रम में श्रृंगार के साथ ही संध्या आरती की जाती है| श्रृंगार आरती के लिए फूल माला और और सुन्दर से वस्त्र पहना कर भगवान को तैयार किया जाता है जैसे की हम लोगों के सामने जाने से पहले सज श्रृंगार करते हैं वैसे ही संध्या आरती के समय भगवान को उनके भक्त निहारते हैं इसलिए उन्हें खूब श्रृंगार करवाई जाती है और साथ ही आरती यानि धूप या कपूर से आरती की जाती है| यह कोई बड़ी आरती नहीं होती है यह एक संक्षिप्त और सुन्दर आरती होती है भगवान के श्रृंगार के बाद| सबसे पहले तो भगवान को उनके श्रृंगार के सामान से सजाई जाती है उन्हें माला पहनाई जाती है और फिर उन्हें दर्पण दिखया जाता है इस भावना के साथ की वो क...

भोग आरती [Bhog Aarti]

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भोग आरती दोपहर के भोग लगाने के बाद की जाती है इसे मध्यान्ह आरती भी कहते हैं| रोज अन्न, पूरी, सब्जी या मिठाई भगवान को भोग लगाया जाता है और संक्षिप्त या पूर्ण आरती की जाती है| धूप और दीप आरती से भोग आरती संपन्न की जाती है| मठ और मंदिर में ही प्रधानत भोग आरती की जाती है पर घर पे भोग आरती विशेष रूप से नहीं की जाती है क्यों कि समय अभाव के कारण यह होता है पर कुछ घरों में फिर भी भोग चढ़ाकर आरती की जाती है| अगर भोग आरती करना है तो यह 11 बजे से 12 बजे तक ही करना चाहिए| यही असल में भोग चढ़ाने का सही समय होता है| पर अगर आपके पास समय न हो तो आप कम से कम 2 बजे तक करना ही चाहिए| भोग आरती प्रधातन संक्षिप्त आरती ही होती है जो केवल धूप, दीप और कपूर से ही की जाती है| भोग भगवान को चढ़ाकर उसे निवेदन करके जैसे विष्णु पूजा में तुलसी पत्र चढ़ाकर या दुर्गापूजा में लाल फूल  या गणेश पूजा में दूर्वा चढ़ाकर अर्पण किया जाता है| भोग अर्पण करने के बाद आरती की जाती है धूप, दीप से और फिर आरती संपन्न होने के बाद शंख से जल छिड़क कर फिर उसे सारे भक्तों में बांटा जाता है| भोग चढ़ाकर ही फिर दोपहर का खाना कुछ परिवार ग्रह...

पूजा आरती [Pooja Aarti]

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मंगल आरती और धूप आरती के बाद होती है पूजा आरती| पूजा आरती इसे इसलिए कहा जाता है क्यों के यह पूजा के अंत में यानि पूजा सम्पन्न होने के बाद किया जाता है| सुबह पांच या सात उपचार के साथ आरती करने के बाद धूप, पंचप्रदीप, शंखजल, पुष्प और चामर या पंखे से आरती की जाती है इसे ही पूजा आरती कहते हैं| पूजा आरती से पहले पुष्प, अक्षत, चन्दन, धूप, दीप से पूजा किया जाता है| बहुत से जगह पर षोडश उपचार से भी पूजा किया जाता पर यह ज्यादातर आनुष्ठानिक पूजा में ही की जाती है| पूजा आरती हर मंदिर में अलग अलग तरीके से की जाती है पर कुछ जगह पर केवल गंध पुष्प से पूजा करने के बाद भी पूजा आरती की जाती है| आरती एक सम्पूर्ण पूजा है इसलिए अगर पंच आरती पद्धति  से आरती की जाती है वह भी एक सम्पूर्ण पूजा है| क्यों की आरती को एक स्वयं सम्पूर्ण संक्षिप्त आरती करते हैं| पूजा आरती करने लिए पुष्पांजलि प्रदान करके भी आरती कर सकते हैं| पूजा आरती और संध्या आरती ही सबसे ज्यादा प्रचलित आरती है| किसी भी प्रकार की पूजा अगर आप करते हैं तो उसके संपन्न करने के लिए पूजा आरती करना आवश्यक होता है| मंदिर में भगवान के उपचा...

धूप आरती [Dhoop Aarti]

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धूप आरती सुबह के द्वितीय आरती है जो भगवन के स्नान के बाद किया जाता है| यह धूप से ही केवल की जाती है इसलिए इसे धूप आरती कहते हैं| मंगल आरती के बाद भगवान भगवान को स्नान करवा के उन्हें पोशाक और फूल माला से श्रृंगार किया जाता है उसके बाद सुगन्धित धूप से उन्हें धूप विलास यानि आरती की जाती है| बहुत से लोग घर पे मंगल आरती नहीं कर पाते होने क्यों के वह ब्रह्म मुहूर्त में करना होता है इसलिए धूप आरती से ही अपने घर की पूजा की शुरुवात कर ते हैं| मंदिर और मठ में मंगल आरती के बाद धूप आरती की जाती है| कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर के माँ काली की धूप आरती जयपुर में गोविंद देवजी की धूप आरती बहुत ही प्रसिद्ध है|  धूप आरती में धुनुची में नारियल छिलका, धूना, गुग्गुल जलाकर उससे आरती की जाती है| धूप के साथ साथ घी दीपक से भी किसी किसी जगह पर आरती की जाती है पर धूप आरती में धूप ही प्रधान होती है| धूप को प्राकृतिक वनस्पति रस कहा गया है जो की शुद्ध है अगरबत्ती से धूप आरती कभी नहीं की जाती है| धुनुची धूप से ही धूप आरती होती है| अगर आपको धूप आरती के सबसे अच्छे नज़ारे देखने हैं जो कि हर विशेष रूप से होती ह...

मंगल आरती [Mangal Aarti]

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मंगल आरती को प्रभात आरती भी कही जाती है क्यूंकि यह भोर के समय की जाती है| सूर्योदय से पहले इस आरती को करते हैं इसलिए यह मंगल आरती होती है यह दिन की पहेली आरती होती है जिसे ब्रह्म मुहूर्त में ही करना होता है| इस आरती के मध्य से हम भगवन को निद्रा से जगाते हैं या फिर ऐसा भी कहा जाता है कि यह निद्रा से जागने के बाद भगवान की पहली आरती है| यह आरती संक्षिप्त आरती होती है जो कि धूप, दीप या कपूर से की जाती है| कुछ जगह पर इस समय भगवान को जल प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है ऐसे मान्यता के साथ ही नींद से जागने के बाद भगवान को प्यास लगी होगी|  मंगल आरती करने के लिए सबसे पहले जल छिड़का जाता है और शंख ध्वनि के साथ भगवान को जगाकर धूप से और फिर दीप से आरती की जाती है कुछ मंदिर या मठ में धूप और कपूर से भी मंगल आरती अनुष्ठित होती है| मंगल आरती के बाद ही भगवान की दिनचर्या और सुबह की पूजा या स्नान की जाती है| मंगल आरती के समय धूप करने को ऊषा धूप अर्चन भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है  सुबह सुबह धूप से भगवान को एक ताजापन देना जैसे हम सुबह सुबह नींद से जागकर धूप करते हैं ताकि हमर पूरा दिन फ्रे...

आरती के प्रकार [Types of Aarti]

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आरती हम रोज सुबह शाम घर पे करते ही हैं पर क्या आप जानते हैं कि आरती करने के लिए दिन के अलग अलग भाग है और जैसे हम अपने दिनचर्या का पालन करते हैं उसी तरह भगवान के दिनचर्या के अनुसार हम आरती करते हैं| जय से सुबह मंगल आरती शाम को संध्या आरती| वैसे तो दिनचर्या के हिसाव से सुबह मंगल मुहूर्त से लेकर रात तक आरती के पांच प्रकार है पर सात प्रकार से भी भगवान की सेवा आरती की जाती है| पांच समय आरती करने को मंगल आरती, पूजा आरती, भोग आरती, संध्या आरती, शयन आरती कहाँ जाता है कई कई जगह पर मंगल आरती, धूप आरती, पूजा आरती, संध्या आरती और शयन आरती की जाती है| दिन के सात समय आरती में मंगल आरती, धूप आरती, पूजा आरती, भोग आरती, श्रृंगार आरती, संध्या आरती, शयन आरती की जाती है| इसे सुबह से लेकर सहन तक भगवान की दिन चर्या कहाँ जाता है| जैसे मंगल आरती के साथ सुबह निंग से जागना, स्नान करके वस्त्र पहनकर सुगन्धित धूप से धूप आरती, दिन के पूजा के समाप्त के साथ पूजा आरती, मध्यान्ह भोग के साथ भोग आरती, दोपहर के बाद संध्या के लिए श्रृंगार करते हुए श्रृंगार आरती, संध्या के समय धूप अर्चन के साथ संध्या आरती और रात को दिनच...

वैष्णव और शाक्त पूजा में कैसे करते हैं दिया बाती? [Vaishnav aur Shakt puja me Diya Batti]

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हम पूजा के लिए घर पे रोज दीपक जलाते ही है और अगर अलग से दीपक न भी जलाय तो भी आरती के लिए पांच बत्ती लगाते ही है| वैसे तो हम सफ़ेद रुई से यह दीपक जलाते हैं पर क्या आप जानते हैं कि वैष्णव और शाक्त पूजा में दीपक जलने के अलग अलग विधान हैं और बहुत काम ही सफ़ेद रुई से बत्ती जलाई जाती है| सबसे पहले यह बात जान ले कि वैष्णव अपने पूजा में पीले यानि संस्कृत में जिसे पीत वर्ण कहा गया है उसे सबसे ज्यादा शुभ मानते हैं और शाक्त अपने पूजा में लाल रंग यही संस्कृत में जिसे रक्त वर्ण कहाँ गया है उसे सुबह मानते हैं| पूजा में दीपक जलाने का मतलब होता है उस देवी या देवता के तेज को दीपक के रूप में स्थापित करना| अगर हम कोई पूजा संकल्प लेकर करते हैं तो इसलिए आरती के दीपक के इलावा भी एक अखंड दीपक जलाई जाती है क्यों के वह प्रतीक होता है उस भगवान की जिसकी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करके हम पूजा कर रहे होते हैं| आरती के दीपक अग्नि तत्व का प्रतीक माना जाता है इसलिए हर परंपरा में उसके जलाने और आरती करने के विधान अलग अलग है| हाँ यह बात सच है की इस हर विधि का एक ही लक्ष होता है परमात्मा तक पहुंचना|  वैष्णव अपने...

लक्ष्मी-नारायण व्रत पूजा आरती कैसे करें? [Laxmi-Narayan vratpuja kayse karen]

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लक्ष्मी व्रत पूजा या फिर लक्ष्मी-नारायण व्रत पूजा करने की कई तरीका है पर बहुत ही सरल और सहज तरीके से आप कैसे यह व्रत कर सकते हैं और नारायण की आरती कर सकते हैं इसके बारे सरल उपाय हम यहाँ आपको बताने जा रहे हैं| यह व्रत पूजा गुरुवार के दिन की जाती हैं जो सोलह दिन तक करना चाहिए| बहुत से लोग इसे छह महीने या एक साल तक भी करते हैं| उसके बाद ही उसका उद्यापन किया जाता है| लक्ष्मी नारायण पूजा के लिए आपको जिन सामग्री की जरुरत है वह है कलश, नारियल, आम के पत्ते, अक्षत, चन्दन, पुष्प, दूर्वा, धूप, दीप, फल, मिठाई, बतासा, नारियल के लड्डू, पान-सुपारी, आरती के लिए सामान| यह व्रत आप किसी भी समय कर सकते हैं पर यह ज्यादातर अग्रायण महीने से शुरू होती है और पौष संक्रांति तक चलता है| पर आप इसे अपने तरीके से किसी भी समय कर सकते हैं गुरुवार को| अगर आपके घर या परिवार या प्रदेश में किसी विशेष समय यह व्रत पूजा होती है तो आप उसी समय इसे कर सकते हैं| इस दिन पिले चीजों का ग्रहण करना और खाना बहुत जगह पर शुभ माना जाता है इसलिए बहुत से जगह पर खिचड़ी खाई जाती है| पर इन सबसे ऊपर जिस चीज पर ध्यान देना जरुरी है वह है सा...

रोज घर पे भोग और आरती कैसे करें? [Roj ghar pe bhog aarti kayse karen]

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घर पे वैसे तो हम रोज पूजा करते ही है पर कुछ लोग चाहती है कि वो भगवान को भोग लगाए और साथ ही भोग आरती भी करें| पर उन्हें यह समझ में नहीं आता है कि कैसे भगवान को भोग लगाए और कैसे आरती करें| सबसे पहले यह बात बता देना जरुरी है कि भोग का मतलब पकाया हुआ खाना ही समझते हैं हम पर आप चाहे तो कच्चा भोग भी चढ़ा सकते हैं अगर आपके घर पे अलग से रसोई या भोग बनाने के लिए बर्तन नहीं है तो| सबसे पहले आप यह समझ ले कि आप भोग में क्या चढ़ाना चाहते हैं, अगर आप एक खाना रोज नहीं खा सकते तो भगवान को भी रोज एक ही खाना चढ़ाना सही नहीं होता है| भोग देना कोई विशेष जरुरी है ऐसा तो नहीं है पर यह भक्त और भगवान के बिच एक भावना होती है कि हम भगवान को भोग लगाकर ही खाना खाते हैं दिन में एकबार ही सही| ज्यादातर हम दोपहर के समय भोग लगाते हैं| पर कुछ लोग जो भोग नहीं लगा पता है समय के या साधन के कारण जो खासकर कामकाजी और फ्लैट में रहते हैं जहा अलग से भोग बनाना मुश्किल होता है, वह भोग में चना, बतासा, मिसरी या शरबत भी चढ़ा सकते है| या फिर फल काटकर भी फल भोग लगाया जा सकता है| भोग अगर आप बना रहें है तो ध्यान में रखें कि पीतल के बर...

धुनुची धूप जलाने का तरीका [Dhunuchi Dhoop jalane ka tarika]

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अगर आप घर पे रोज धूप करना चाहते हैं पर सही तरीके से कर नहीं पते हैं तो उनको आज हम बताएँगे कि  कैसे घर पे जलाते हैं धुनुची धूप| बहुत से लोग गे के गोबर के कंडे में धूप जलाते हैं पर अगर आप घर पे धुनुची धूप जला रहे हैं तो सबसे अच्छा होता है कि आप नारियल के खोल यानि छिलके से जलाय| यह बाजार में नारियल बेचने वाले के पाश मिल जाता है साथ ही कुछ पूजा सामग्री के दुकान में भी आप आर्डर देकर इसे खरीद सकते हैं| कुछ प्रदेशों में लोग पुरे नारियल को भी खरीदते हैं और घर पे उसे छील कर सही तरीके से काट के उससे फिर धूप जलने में इस्तेमाल करते हैं| धूप जलने के लिए तो जबसे पहले आप एक पीतल का धुनुची ले ले| बहुत से लोग मिटटी कि भी धुनुची इस्तेमाल करते हैं पूजा के लिए पर अगर आप धूप से आरती कर रहें हैं तो आपको पीतल का धुनुची ही लेना चाहिए| धुनुची को साफ करके ही आप पूजा या आरती के लिए इस्तेमाल करें| धुनुची लेने के बाद अब नारियल के छिलके को छोटे छोटे आकार में काट के या फिर छिलके के जो नरम भाग होता हैं उसे हात से अच्छी तरीके से शक्त खोल से अलग करके धुनुची में अच्छी तरह से रख ले| ऐसे रखें ताकि आपको जलाने में क...

गणेश विसर्जन आरती [Ganesh Visarjan]

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वैसे तो गणपति बाप्पा हर समय हमारे साथ ही रहते हैं पर  अगर आप मूर्ति में उनको स्थापित करके पूजा कर रहे हैं गणेश उत्सव के समय तो उनका विसर्जन करना भी एक नियम है| पर विसर्जन से पहले भी बाप्पा की आरती करनी होती है और उनसे दोबारा प्रदाहरणे के लिए अनुरोध किया जाता है, ताकि बाप्पा अगले साल फिरसे ए और बहुत सी खुशिया हमारे घर लेकर आए| बहुत से लोग तीन दिन तक ही गणपति अपने घर पे रखते हैं और फिर विसर्जन करते हैं पर कुछ जगह पर सात या दस दिन भी गणपति रखी जाती है| गणपति विसर्जन के लिए आपको सबसे पहले घरपे ही गणपति जी के एकबार आरती करनी चाहिए और साथ ही एक नारियल उन्हें अर्पण करना चाहिए| आरती में धूप और पंचप्रदीप घी या तेल से जलाकर ही करें आप कहें तो कपूर से भी आरती कर सकते हैं| इसके बाद आप गणपति जी को अगले बार आने के अनुरोध करें उनके कान में और साथ ही अगर आप कुछ उनसे मांगना या कहना चाहते हैं तो उनके कान में ही बोल दीजिये| इसके बाद उनसे क्षमा याचना करें की 'हे गणपति बाप्पा हमने आपकी समर्थ औसर पूजा करने की कोशिश की पर अगर कोई त्रुटि या दोष रह गई है तो उसके लिए हमे क्षमा करें और अगले साल अहम्रे ...

कैसे करें गणेश जी की धूप सेवा [Ganesh Dhoop Aarti]

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अगर गणपति जी आपके घर बिराज रहे हैं तो उसके लिए उनके आप कुछ न कुछ करना ही चाहते हैं, पर आजकल हमारे पास समय के कमी के कारण हम बहुत कुछ कर नहीं पते हैं| पर ऐसे कई सारे सरल उपाय भी है जिसके माध्यम से हम गणेश जी की आरती और सेवा कर सकते हैं| आइये ऐसे ही एक सरल उपाय के बारे में जान लेते हैं| अगर आपके पास बहुत सारा समय भोग लगाने की या फिर बहुत समय बैठके पूजा करने के लिए नहीं है तो आप गणपति बाप्पा के धूप सेवा भी कर सकते हैं| इसके लिए आपको दोनों धुनुची धूप गणेश जी के सामने जलने चाहिए जिसमे एक गणेश जी के लिए होता है और दूसरा माँ गौरी के लिए| धुनुची को जमीं पे सिर्फ न रखे उसके लिए उसे अक्षत बिछाकर ही स्थापन करें और जल, गन्धपुष्प ततः अक्षत से अर्पण करें| "धूपघ्रायामि ॐ गं गणेशाय नमः" और "धूपघ्रायामि ॐ नमः गौरी देव्यै नमः" | इसे दिनमे टिंबर जरूर श्री गणेश जी को अर्पण करें और साथ ही धूप-डीप से आरती करें| धूप जलने के लिए नारियल छिलका, कपूर, धूना, गुग्गुल जरूर इस्तेमाल करें| गपति जी को एक नारियल अगर हो सके तो रोज चढ़ाय साथ ही उन्हें पैन करने के लिए पवित्र जल भी रोज लोटा में भर...

गणेश आरती संगीत [Ganesh Aarti Song]

1. हिंदी गणेश आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी। पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥ जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ अन्धे को आँख देत, कोढ़िन को काया। बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।। 'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ 2. मराठी गणेश आरती  सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची। नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची। सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची। कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥ जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती। दर्शनमात्रे मन कामनांपुरती॥ जय देव रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा। चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा। हिरेजड़ित मुकुट शोभतो बरा। रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरीया॥ जय देव लंबोदर पीतांबर फणीवर बंधना। सरळ सोंड वक्रतुण्ड त्रिनयना। दास रामाचा वाट पाहे सदना। संकष्टी पावावें, निर्वाणी रक्षावे, सुरवरवंदना॥ जय देव ...

गणपति बाप्पा की संध्या आरती करें इस तरह से [ Ganesh Ji ki Aarti]

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गणपति बाप्पा अब आपके घर में बिराजमान हैं और आप उन्हें अपने घर के सदस्य की तरह ही आपको यतन करना होगा, उसके लिए आप जो भी घर पे बने वो बाप्पा के लिए ही बना रहे हैं उसी हिसाब से खाना बनाय और साथ ही उसे बाप्पा को भोग में चढ़ाय अगर आप खाना बनाकर नहीं अर्पण कर सकते तो कोई परेशानी नहीं है आप एक नारियल और गुड़ या मिसरीके सरबर बाप्पा को देते रहे और साथ में एक लोटा जल भी जरूर रख दे| गणपति बाप्पा जब आपके घर में बिराजते हैं तो रोज सुबह शाम आरती जरूर करें| सुबह जब आप आरती करें तो शंख नाद के साथ बाप्पा को जगाय और घंटी बजाते हुए धूप-दीप अथवा कपूर से आरती करें| संध्या के समय भी आप आरती जरूर करें| सबसे पहले गणपति बाप्पा के दोनो तरफ अक्षत रखदे और उसके ऊपर दिया स्थापन करके दीपक जला दे| संभव हो तो अक्षत बिछाकर उसपे दोनों तरफ आप  दो धुनुची भी रख दे| गणेश जी के साथ माँ गौरी भी हमारे घर में बिराजमान होती है इसलिए एक धूप गणेश जी के नाम और एक धूप माँ गौरी के नाम पर स्थापन करें| इसके बाद अगर आपके पास इक्कीस  दीपदान है जिसमे आप दीपक जलाके आरती कर सकते हैं या फिर आप केवल पंचप्रदीप से भी आरती कर सकते ह...

गणेश उत्सव 2018

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आरती इंडिया की तरफ से आप सभी को गणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं|  आप आपने सुझाव हमे कमेंट के जरिये जरूर बताय, साथ ही गणेश आरती के फोटो हमारे फेसबुक पेज पर  हमारे साथ साँझा करें| हम आप के नाम के साथ हमारे पेज में आपके द्वारा भेजे गए गणेश उत्सव आरती फोटो प्रकाशित करेंगे|

कैसे करें घर पे ही सरल गणेश पूजा आरती [Saral Ganpati pujan vidhi]

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श्री गणेश गणों के ईश है अर्थात सबसे ईश्वर, इसलिए उन्हें अपने घर का सदस्य और अपने बंधू दोस्त मानकर ही पूजा आरती करें| गणपति बाप्पा प्यार भावना के भूखे है नाकि सिर्फ सामग्री और उपचार के| बस इस बात का ध्यान रखे कि अगर आप अपने घर पे श्री गणेश की स्थापना करते हैं तो दिन में टिंबर आरती जरूर करें और पुरे घर में भी धूप जरूर करें साथ ही अगर आप अखंड दीपक न भी जला पाए तो घर के बत्ती को न बुझाय| गणपति बाप्पा के लिए मंदिर या चौकी के पास एक गिलास या लोटा में पानी भरके जरूर रख दे|  अगर आप धातु के गणेश मूर्ति की पूजा कर रहे हैं तो उसे सबसे पहले कच्चे हल्दी से नहलाए और पंचामृत  से अभिषेक जरूर कर ले| अगर आप मिटटी की मूर्ति में ही गणपति आराधना कर रहे हैं तो उसके लिए आप किसी सुपारी को भगवान की मूर्ति मानकर उनकी अभिषेक कर सकते हैं| नहलाने के बाद गणेश जी को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उन्हें बैठा दे और अच्छे से फूल माला से सजा जरूर दे| इसके बाद बाप्पा के दोनों तरफ पीतल या चांदी के दो दीपक जला दे जिसे आप तेल से ही जलाय जिनमें सबसे अच्छा होगा नारियल तेल का इस्तेमाल करना| अगर आप कहें तो दोनों तरफ...

गणेश पूजा के भोग में तुलसी नहीं दूर्वा डालकर अर्पण करें [Ganesh Puja Tulsi ke bina]

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किसी भी पूजा में भोग लगाते समय तुलसी डालना अनिवार्य होता है पर गणेश पूजन में तुलसी नहीं डाली जाती है उसके बदले आप उसमे दूर्वा डालकर भोग निवेदन कर सकते हैं| गणेशजी को आरती करने के लिए पुष्पांजलि देने के लिए जवाकुसुम, दूर्वा, अक्षत अर्पण करें| आप गणपति को बहुत सरे फूल से भी सजा सकते हैं पर उन्हें जवा पुष्प सबसे प्रिय है, लाल रंग के किसी भी प्रकार के फूल, बेलपत्ता, दूर्वा जरूर चढ़ाय और वह माला बनाकर भी पहना सकते हैं| रोज नै और ताजे माला ही पहनाय नाकि पहले दिन पहनाई माला ही आप विसर्जन तक ही रख दे| कोशिश करें की घर के गमले में उगी हुई जावा पुष्प से आप पूजा करें और अगर आपके बगीचे में दूर्वा है तो उसी से पूजा करें| आजकल बाजार में बनी बनाय दूर्वा और फूल की माला मिल जाती है पर अगर आप अपने घर में ही होनेवाले फूल या दूर्वा भगवन को अर्पण करेंगे तो बहुत ही अच्छा होगा| एक बात का खास ध्यान रखे कि गणेश पूजन में तुलसी कभी भी इस्तेमाल न करें| फूलों के साथ गणेश जी को लाल चन्दन जिसे रक्त चन्दन भी कहते हैं उसे ही अर्पण करें|

क्यों जलाते हैं श्री गणेश के सामने नारियल तेल का दीपक? [Ganeshpuja Lamp oil]

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बहुत सारे लोगों को यह पता नहीं होगा कि गणपति पूजन में जो दीपक जलाई जाती है वह नारियल तेल से जलाई जाती है बहुत ही एक सुन्दर खुशबु बिखेरता है आपके चारो तरफ| वैसे तो आरती के लिए घी या तिल का तेल ही इस्तेमाल किया जाता है| कहाँ जाता है कि हर देवी देवता के तरह ही श्री गणेश जी को भी सुगंध बहुत ही प्रिय होता है इसलिए उनके सामने धूप और सुगन्धित तेल से दीपक जलने से वह बहुत ही जल्द प्रसन्न हो जाते हैं| नारियल एक ऐसा उपादान है जो बहुत ही शुद्ध और सम्पूर्ण होता है इसलिए नारियल के बिना हम किसी भी प्रकार के पूजा के बारे में नहीं सोच सकते| अगर आप पूजा में नारियल तेल के दीपक जलाकर श्री गणेश का आवाहन करते हो तो यह बहुत ही एक सुन्दर बातावरण तैयार करता है| वैसे तो गणेश पूजन पुरे भारत भर में मनाई जाती है पर महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के तेलंगाना में खास रूप से मनाई जाती है| नारियल यहाँ के एक मूल तैलीय बीज है जो हर तरह के काम में  इस्तेमाल होता है| नारियल के तेल को यहाँ पर सबसे शुद्ध माना जाता है किसी भी पूजा के लिए| कहाँ जाता है की नारियल से बने कुछ भी गणपति बाप्पा को सबसे पसंद है चाहे वह मोदक हो,...

गणेश चतुर्थी के लिए कैसे करें तैयारी [Ganesh Chaturthi Festival]

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इसबार गणेश उत्सव 13 सितम्बर को है| गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र सहित पुरे भारत भर में अब मनाई जाती है पर यह विशेष रूप से महाराष्ट्र की ही उत्सव है इसलिए इस उत्सव को मराठी समुदाय के लोग बहुत ही हर्षोल्लास से मानते हैं और साथ ही बहुत ही निष्ठा से| गणेश चतुर्थी दस दिन चलनेवाला त्योहार है पर कुछ लोग इसे घर पे तीन दिन या फिर पांच या सात दिन के लिए भी रखते हैं| ज्यादातर पंडाल में गणपति स्थापना करके उसे दस दिन तक ही पूजा और आरती की जाती है| गणेश पूजा और आरती के लिए आप क्या क्या सामग्री लेनेगे जो की आपके पूजा को सही बनाएगा उसके लिए आइये जान ले यह सूचि- १. श्री गणेश जी की मूर्ति २. गणपति को रखने के लिए चौकी ३. लाल कपड़ा ४. अपने अपने हिसाव से गणपति जी को सजाने के लिए शृंगार के सामान ५. कलश ६. आम के पत्ते ७. नारियल कलश के लिए  ८. नारियल पूजा के लिए ९. धूप, गुग्गुल १०. दीपक के लिए घी, तिल या नारियल का तेल ११. फल प्रसाद के लिए १२. मेवा और बतासा १३. मोदक या लड्डू १४. पान सुपारी १५. मिसरी का शरबत १६. जवाकुसुम के फूल १७. दूर्वा १८. अक्षत १९. लाल चन्दन २०. सिंदूर, कुमकुम २१. आ...

घर पे रोज कैसे करें संक्षिप्त आरती [Everyday Short Aarti]

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घर पे हम पूजा तो करते ही है पर रोज आरती नहीं कर पाते हैं सही तरह से और बस विशेष तिथि पर ही आरती करते हैं, इस तरह से पूजा तो हो जाती है पर आरती सही पूजा सम्पूर्ण मणि जाती है यहाँ तक कि अगर आप अलग से पूजा नहीं कर करते हो पर सिर्फ आरती करते हो तो भी आपकी पूजा सम्पूर्ण मानी जाती है| आरती ही मूल पूजा है|  घर पे संक्षिप्त आरती के लिए एक पीतल पंचप्रदीप ले ले और उसे घी या सरसो के तेल से कपास के सहायता से बाटी लगा दे| साथ ही धूप के लिए नारियल के छिलके, धूना और गुग्गुल ले ले| अगर आप संक्षिप्त पूजा कर रहे है तो आप बस फूल, चन्दन और अक्षत अर्पण कर दे और जल से अथवा गंध पुष्प से आरती के दिया और धूप को निवेदन कर दे| अगर आप कोई प्रसाद या मेवा निवेदन करना चाहते हैं तो आरती की पहले ही कर सकते हैं| घंटी और संख ध्वनि के साथ आरती करें और प्रणाम करें| अगर आप पंचप्रदीप इस्तेमाल नहीं भी कर पा रहे हैं तो आप एक दीपक भी जला सकते हैं पर धूप धुनुची वाली ही लेना चाहिए नाकि अगरबत्ती| आरती के बाद पुरे घर में धूप कर दे और आरती ग्रहण करें| संक्षिप्त आरती में किसी भी विशेष मांश की जरुरत नहीं है पर अगर आप कहें त...

बिना पूजा किये घर पे कैसे करें धूप [Bina Puja ke ghar pe karen Dhoop]

आजकल हम एक ब्यस्त जीवन के अधीन हो चुके हैं इसलिए हर समय घर पे मंदिर रखना और नित्य पूजा करना हमारे लिए संभव नहीं होता है| पर बहुत से लोग है जो घर पे पूजा करना चाहता है पर मंदिर न होने की कारण वो पूजा नहीं कर पाते हैं| यहाँ पर एक विषय आपको जानकारी में रखना जरुरी है कि बिना पूजा किये भी आप घर पे आरती या धूप कर सकते हैं| बहुत से लोग जो आजकल नौकरी या फिर किसी पढ़ाई के लिए बाहर रहते हैं पर उन्हें पूजा करने की मन होती है वो भी घर पे बिना मंदिर स्थापना किये ही आरती और धूप कर सकते हैं| आइये जान ले इस बारे में| अगर आप घर पे सिर्फ धूप और आरती यानि दिया करना चाहते हैं तो आपको अलग से मंदिर रखने की जरुरत नहीं है आप अपने पसंदीदा भगवान के बस एक छवि ही रख सकते हैं| बहुत से लोग अपने घर पे अगरबत्ती जलाते हैं पर यह धूप करना नहीं होता है, धूप करने के लिए धुनुची धूप ही इस्तेमाल करना होता है जो राल, गुगुल, कपूर से जलाई  जाती है| इसे ही धूप देने के लिए इस्तेमाल करें| सबसे पहल आप  स्नान कर ले और फिर अगर संभव हो सके तो भगवान के फोटो के सामने एक गंधपुष्प अर्पण कर दे| उसके बाद धूप जला ले और भगवान से धू...

नंदोत्सव पर करें ठाकुरजी की भोग आरती [Nandotsav Aarti]

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जन्माष्टमी अगर आप पालन करते हैं तो आपको नंदोत्सव भी जरूर मनाना चाहिए| नंदोत्सव पर ठाकुरजी को मध्याह्न भोग चढ़ाय और आरती जरूर करें| आप नंदोत्सव के पूजा में आने घर पे बने हुए खाना ही भोग के रूप में दे सकते हैं या फिर उस दिन आप अपने घर पे ऐसे खाना बनाय जो आप भगवन को भोग लगा सकते हैं और सब मिलकर यही भोग प्रसाद खाये| अगर आप कृष्ण जन्माष्टमी मानते हैं तो दूसरे दिन नंदोत्सव भी जरूर मनाय और उसके लिए अन्न, पुरी, खिचड़ी, तरकारी, खीर और मिठाई भोग में चढ़ाय| उसके बाद आरती करें| आरती करने से पहले सारे भोग जरूर भगवान को निवेदन कर ले और तुलसी का पानी सारे भोग पर छिड़क कर तुलसी पत्र जरूर डाले| आरती करते समय ध्यान रखे की भोग निवेदन करने के बाद ही आरती हो| बहुत जगह पर भगवान के सामने भोग रहते हुए ही आरती की जाती हैं पर कुछ जगह पर भगवान के सामने से भोग के थाली हटाकर ही आरती शुरू की जाती हैं आप अपने पसंद से ही आरती कर सकते हैं| आरती करते समय धूप और दीप से आरती करें या पांच नीराजन पद्धति से आरती करें| आरती के बाद शंख नाद करें और सबको आरती प्रसाद के रूप में धूप और दीप के ताप दे| इसके बाद सबसे भोग प्रसाद दे...

कैसे करें जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण आरती [Shree Krishna Aarti]

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अगर आप गोपालजी की आरती कर रहे हैं या फिर आप राधा-गोविन्द की पूजा कर रहे हैं या फिर लक्ष्मी-नारायण की तो एक बात का ध्यान रखे की यह एक वैष्णव पूजा है और इसमें आरती ही मूल पूजा है| जन्माष्टमी की पूजा करने के लिए आचमन पत्र में तुलसी और जल जरूर ले लीजिये साथ ही थाली में फूल, हरिचंदन और अक्षत रख ले| अब आचमन करते हुए सारे बस्तुओं पर आचमन पात्र में रखा जल आचमनी पात्र की सहायता से छिड़क दे| इसके बाद मिश्री की शरबत और माखन, मिश्री, बतासा, लड्डू सब ठाकुरजी को अर्पण करें| प्रसाद पे तुलसी पात्र जरूर रखे| आप धुनुची में धूप जलाय और उसे ठाकुरजी को दिखते हुए आरती करें ठीक उसी प्रकार घी के एक दीपक जलाकर भी ठाकुरजी को दिखते हुए आरती करें| इसके बाद तीनबार पुष्पांजलि दे और प्रणाम करें| इसके बाद 'एष धूपः भगवते बसुदेवाय नमः' कहके आरती करें साथ ही 'एष नीराजन दीपमालायें नमः' बोलकर पंचप्रदीप जलाकर आरती करें| इसके बाद शंख जल, कमल के पुष्प और मोरपंख के पंखे से आरती करें| आरती के बाद सबमे धूप और दीप आरती प्रसाद स्वरुप सबसे पहले दे और साथ ही पुरे घर में दिखाय| अगर आपके घर में बचे हैं तो भोग प्रसा...

स्मार्त मत से कब है जन्माष्टमी और वैष्णव मत से कब हैं जन्माष्टमी? [Janmashtami 2018]

स्मार्त और वैष्णव मत में कुछ भिन्नता है| स्मार्त मत के अनुसार जन्माष्ठमी उस दिन मनाई जाती हैं जिस दिन मध्यरात्रि में अष्ठमी होती हैं पर वैष्णव मत के अनुसार उदय तिथि यानि सूर्य उदय से ही जिस दिन अष्ठमी रहती है उसी दिन जन्माष्टमी होती है| इसलिए जो स्मार्त मत के अनुसार जन्माष्ठमी मनाना चाहें तो वह 2 सितम्बर को ही जन्माष्टमी मना सकते हैं और अगर कोई वैष्णव मत के अनुसार  जन्मास्टमी मनाना चाहें तो वह 3 सितम्बर को ही जन्मास्टमी मनाय| वृन्दावन और जयपुर सहित कई सारे वैष्णव तीर्थ और मंदिर में वैष्णव मत के अनुसार ही जन्माष्टमी मनाई जाएगी| पर आप अपने मत के अनुसार ही जन्माष्ठमी मना सकते हैं| और चाहें तो दो दिन भी जन्माष्टमी का त्यौहार मना सकते हैं|