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पूजा में क्यों न करें अगरबत्ती इस्तेमाल [Puja me na karen agarbatti istemal]

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धूप करने के बारे में बहुत बार बात जरूर करते हैं पर एक बात याद रखना बहुत ही जरुरी है कि धूप और अगरबत्ती करना एक चीज बिलकुल भी नहीं है| धूप एक प्राकतिक बस्तु है जो पेड़ कि गोंद से परैत होती हैं पर अगरबत्ती को केमिकल यानि अप्राकतिक तरीके से बनाई जाती है| अगरबत्ती में बाँस का प्रयोग भी किया जाता है जो कि शास्त्र के अनुसार इस्तेमाल करना बिलकुल भी बर्जित है| बाँस बंश बृद्धि के प्रतीक होते हैं पर यह कवी भी जलाया है जाता है यहाँ तक कि अंतिम क्रिया में भी बाँस जलने की विधि नहीं देखि जाती है| लोक मान्यता के अनुसार बाँस जलाना अशुभता के लक्षण होते हैं साथ ही अगरबत्ती में रहनेवाले हानिकारक केमिकल बहुत ही हानिकारक होता है हमारे सेहत के लिए इससे निकलनेवाले धुआँ सिगरेट की धुआँ के सामान ही होता है जो आपके फेफड़े के लिए बहुत ही क्षतिजनक होता है| पर जब हम धुनुची में धूप जलाते हैं उसमे नारियल के छिलके या गोबर के कंडे में धूप, गुग्गुल, कपूर से जलाते हैं जो की एक प्राकतिक धुआँ होता है और शरीर के लिए हानिकारण नहीं होता है| बहुत से लोग इसे जलाना नहीं कहते क्यों के उन्हें लगता हैं की यह बहुत ही झमेले की बात ह...

पूजा में कोई वस्तु चढ़ाने में कमी है तो उसे ऐसे करें पूरा [Puja me kami me kya chaday]

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वैसे बहुत से समय हम हर तरह के सामग्री पूजा में इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं तो उसके लिए क्या करना कहिहिये आइये जान लेते हैं| पूजा के लिए बहुत सरे सामग्री की जरुरत तो नहीं है पर अगर आप विशेष उपचार के साथ पूजा आरती करते हैं तो उसमे कई तरह के सामग्री की जरुरत होती ही है| आजकल के भाग दौड़ के कारन कई तरह के सामग्री के जुगाड़ हम नहीं कर पाते हैं इसलिए कई समय हमारे मन में भी कई तरह की अशांति नहीं होती है की इससे हमारी पूजा सम्पूर्ण होगी भी या नहीं| इसके उपाय वैसे तो बहुत ही सरल है पर जायदातर लोग इसे नहीं जानते हैं| इसके लिए आपको जो वस्तु चाहिए वह है अरवा चावल यानि अक्षत| किसी भी चीज की कमी अगर आपके पूजा में रहती है उसमें चावल छिड़क कर यानि अक्षत समर्पित करके आप पूजा सम्पूर्ण कर सकते हैं| जैसे अगर आप अलग से प्रसाद नहीं चढ़ा पाए हैं या फिर कोई श्रृंगार के वस्तु या दूसरे चीजे नहीं चा पाए हैं तो उसे आप अक्षत के साथ मंत्र बोल के समर्पित कर सकते हैं| पर ध्यान रखे पुष्प, चन्दन और धूप-दीप की जगह पर अक्षत नहीं चढ़ाय जाते यह प्रत्यक्ष रूप में ही चढ़ाना होता है पुष्प अगर कभी न मिले तो आप उस जगह पर जल चढ़ा सकते...

क्या विष्णु पूजा में अक्षत सम्पूर्ण बर्जित है? [VishnuPuja me yese puja kare Akhsat se]

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वैसे तो चावल किसी भी देवता को चढ़ाया जा सकता है पर कुछ मान्यता के अनुसार भगवन विष्णु या शालिग्राम जी के पूजा में अक्षत इस्तेमाल करना बर्जित है| पर यहाँ पर एक बात ध्यान से समझना बहुत ही जरुरी है की शालिग्राम या विष्णु पूजा में 'केवल अक्षत' यानि कोरे अक्षत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए चन्दन या हल्दी के साथ आप श्री हरी विष्णु को अक्षत अर्पित कर सकते हैं| भगवान विष्णु को पीले रंग सबसे ज्यादा पसंद है इसलिए अगर आप हरि चन्दन के रख या हल्दी में रंगे हुए चावल विष्णु पूजन में इस्तेमाल करेंगे तो इसमें किसी भी प्रकार की कोई दोष नहीं है| पुष्प, चन्दन के साथ भी अर्घ्य के रूप में भी आप अक्षत भगवान बिष्नु को चढ़ा सकते हैं पर केवल सफ़ेद अक्षत भगवान बिष्नु को नहीं चढ़ाना चाहिए| माता लक्ष्मी के साथ जब पूजा की जाती है कुमकुम से रंगे लाल रंग के चावल भी आप चढ़ा सकते हैं| ध्यान रखे शिव पूजा में कभी भी रंगीन चावल नहीं चढ़ाना चाहिए क्यों के भगवान शिव योगी है और उनके पूजा में चन्दन और भस्म के इलावा बाकि सारे रंगीन तिलक के सामग्री बर्जित है|  चावल को पूजा पत्र में यानि पुष्पपात्र में ही रखे और गंध पुष्प के सा...

पूजा में क्यों और कैसे चढ़ाय चावल [Puja me chawal yani aksat yese chaday]

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चावल अगर आप रोज पूजा में इस्तेमाल करते हैं तो यह लेख आपके लिए हैं| हम में से बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं की भगवन के पूजा में चावल क्यों चढ़ाते हैं| चावल यानि अरवा चावल को अक्षत ही कहा जाता है| बहुत से लोग बिना अक्षत के ही पूजा करते हैं पर अगर आप पूजा में अक्षत नहीं चढ़ाते हैं तो पूजा को सम्पूर्ण नहीं मानी जाती है इसलिए अक्षत चढ़ाना बहुत ही जरुरी होता है नहीं तो वह पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है| पूजा के मूल जो पांच चीजे जरुरी होती है वह है गंध, पुष्प, अक्षत, धूप और दीप| अक्षत को अनाज के रूप में भी छड़ी जाते हैं क्यों के यह सबसे शुद्ध अनाज होती है जो की धान के भीतर सुरक्षित रहती है| अक्षत चढ़ाने का यही विश्वास होता है की हमारी पूजा सम्पूर्ण हो|  वैसे तो बहुत से देवता को बहुत से सामग्री आप चढ़ा नहीं सकते, जैसे तुलसी को कुमकुम नहीं चढाई जाती और शिवजी को हल्दी नहीं चढ़ती| गणेश पूजा में तुलसी नहीं चढ़ती तो दुर्गापूजा में दूर्वा नहीं चढ़ती लेकिन चावल हर भगवान को चढाई जाती है| वैसे शालिग्राम पर कोरे अक्षत यानि केवल अक्षत नहीं चढ़ाय जाते चन्दन से और हल्दी से रंगे चावल ही विष्णु पूजन में चढाई...

कैसे बनाय घर पे पंचांग धूप [Ghar pe banay panchang dhoop]

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आरती के लिए सबसे जरुरी सामग्री है धूप और दीप| पर बाजार में मिलनेवाले धूप बहुत से समय आजकल मिलावटी होती है और अगर बहुत अच्छे तरह के धूप आप खरीदने जाओ तो उसके लिए बहुत ज्यादा पैसे खर्च करना होता है पर यही धूप हम अपने घर पे ही बना सकते हैं|  इसके लिए जो चीजे की जरुरत होती है उसमे आपको सबसे पहले एक हामान दिसता की जरुरत होगी जिसमे आपको धूप को पिसना होगा सही से| धूप के लिए लिए अबज़र से ही राल यानि धूना, गुग्गुल, कपूर, अगरु और चन्दन ले ले इसे आप सही तरह से हामान दिसता में पिस ले| अगर आप हर चीज को एक साथ न भी पिस पाए तो कोई बात नहीं एक एक चीज को अलग अलग करके पिस ले और फिर मिला ले| वैसे तो केवल धूना और गुग्गुल मिलाकर भी धूप इस्तेमाल किया जा सकता है पर अगर आप पंचांग धूप इस्तेमाल करेंगे तो यह बहुत ही मनमोहक खुशबु से आपके पूजा घर को भर देगी जिसमें पूजा करते समय आपको बहुत ही अच्छा महसूस होगा| अगर आप हर से नहीं भी पिस पा रहे हैं तो भी कोई बात नहीं हैं अपने घर पे मिक्सर ग्राइंडर इस्तेमाल करके भी आप इस सरे चीजों का धूप पाउडर बना सकते हैं| पर एक बात ध्यान रखे की एकदम से पाउडर अगर आप बनाएंगे तो यह...

घर पे कैसे करें देव दीपावली आरती [Dev Deepawali Aarti Ghar pe]

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अगर आप घर पे देव दीपावली की आरती करना चाहते हैं तो भी आप बहुत ही आसानी से कर सकते हैं| घर पे आप अपनी मंदिर में ही आरती सकते हैं और अगर आपके घर पे मंदिर नहीं हैं पर फिर भी आप आरती करना चाहते हैं इस दिन तो आप जिस भी देवता की पूजा करना चाहते हैं या जिस भी देवता को मानते हैं उनकी फोटो रख ले और अच्छे से फूल, माला, चन्दन से सजा ले उसके बाद अगर हो सके तो दीपक जलाकर पुरे घर को रौशन कर ले| धुनुची में धूप जलाय और पुरे घर को धूप के खुशबु से महका दे| घर पे आरती वैसे तो हम एक जन ही करते हैं पर अगर आप देव दीपावली के दिन आरती करते हैं तो कम से कम हो सके तो दो जन मिलके आरती करें| मलीहा या पुरुष कोई भी इस आरती को कर सकते हैं| पति और पत्नी या दोनों भाई भी इस आरती को कर सकते हैं| अगर अपने बनारस की गंगा आरती देखि है तो बिलकुल उसी तरह धूप और डीप को सजा ले| बहुत से लोग जो बनारस जाकर अब तक गंगा आरती नहीं देख पाएं हैं वह यूट्यूब पर भी गंगा आरती एकबार  देख ले सकते हैं| आती शुरू से पहले पुष्पांजलि प्रदान करें और फिर सबसे पहले धूप यानि पीतल के धुनुची लेकर आरती शुरू करें| अगर आप खुद आरती गए पते हैं तो बहु...

काशी की देव दीपावली आरती [Dev Deepawali Varansi]

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दीपावली यानि की लक्ष्मीपूजा के ठीक 15 दिन बाद मनाई जाती है देव दीपावली| यह वैसे तो बनारस में गंगा आरती करके मनाई जाती है जब हर एक घाट पर 108 पुरोहित मिलकर आरती करते हैं और दीपों के ज्योति से जगमगाह उठता है पूरा बनारस| कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है देवों के यह दीपावली| यह उत्सव मनाने के पीछे कारण यह है कि देवउठनी एकादशी के चार माह बाद भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं और इस प्रसन्नता में सभी देवता स्वर्ग से आ कर काशी के गंगा घाटों पर दिवाली मनाते हैं और आरती करते हैं| इसलिए हर साल यहाँ गंगा के 84 घाटों पर ही दीपावली मनाई जाती है| देव दीपावली के दिन धूप यानि धुनुची में धूप जलाकर ही आरती शुरू होती है उसके बाद दीपमाला से आरती होती हैं साथ ही कपूर, जलपूर्णशंख, वस्त्र, पुष्प, मोर पंख और चंवर से आरती की जाती है| शंख नाद से आरती शुरू होती है और शंख नाद से ही आरती संपन्न होती है| धूप के साथ 'जय जय भगीरथ नंदिनी' वंदन करके आरती शुरू होती है| पुरे गंगा घाट पे दीपों से रौशनी की जाती है और धूप के सुगंध से भी पुरे घाट जगमह उठता है| कहता है काशी की गंगा आरती अगर आप देव दीपावली यानि ...

कार्तिक पूर्णिमा में मनाय राधा गोविन्द की रास आरती उत्सव [Kartik Purnima Radha-Govind ki Aarti]

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कार्तिक पूर्णिमा के दिन सबसे अच्छी बात यह होती है की आप इस दिन श्री हरि के किसी भी स्वरुप के पूजा कर सकते हैं चाहे वह लक्ष्मी-नारायण हो, राधा-गोविन्द हो या फिर सिया-राम| अगर चाहे तो घट पे श्री हरि के ध्यान लगाकर भी आप पूजा आरती कर सकते हैं| कहते हैं इसदिन श्री कृष्ण वृंदवाब में राधारानी और गोपिओ संग महारास करते हैं और ब्रिज के यह उत्सब बाकि सारे उत्सव से निराली होती है| इसदिन वृन्दावन के हर मंदिर में राधारानी और कन्हैयालाल को फूलों से श्रृंगार करवाया जाता है और साथ ही पूजा भी की जाती और महाआरती आयोजित की जाती है| कहते हैं शाम को सबसे प्रिय हैं रंग बिरंगे फूल तुलसी के पत्ते| इसलिए अगर आप इसदिन इस तरह से पूजा आरती करते हैं तो कान्हा से प्रेम कभी नहीं छूटता है| वैसे तो यह ब्रिज की उत्सव है पर अगर आप चाहे तो आप भी घर पे ही वृन्दावन की रास उत्सव मन सकते हैं फूलों की आरती करके| आपके घर पे मंदिर में अगर राधा कृष्ण प्रतिष्ठित है तो उन्हें भी आप बहुत अच्छे से सजा सकते हो या फिर राधा गोविन्द की फोटो, द्वारिकाधीश की फोटो राधामाधव के फोटो भी अच्छे से सजा सकते हैं कई तरह के फूलों से| इस पूजा म...

दक्षिण भारत में कार्तिगाई दीपम नाम से मनाई जाती है देव दीपावली [South Indian Karthigai Deepam]

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उत्तर में जैसे लोग कार्तिक अमावस्या पर दीप जलाकर माँ लक्ष्मी की आराधना करते हैं उसी प्रकार दक्षिण में खास कर तमिल और तेलुगु भाषी लोग कार्तिक पूर्णिमाके दिन दीप उत्सव मानते हैं जो कार्तिगाई दीपम के नाम से जाना जाता है| इस दौरान मिटटी के पारंपरिक दीपक जलाकर पुरे घर को रौशन किये जाते हैं और साथ में माँ लक्ष्मी और श्री विष्णु के आरती भी की जाती है| भारत के कई हिस्सों इस दिन भी दीप उत्सव मनाई जाती है जिसमे बनारस की देव दीपावली वर्तमान में सबसे प्रसिद्ध है| दक्षिण में इस दिन दीप उत्सव मनाने की परंपरा काफी पुरानी है और इसे ही दक्षिण की दीपावली भी कहा जाता है| कहते हैं कार्तिक पूर्णिमा माँ लक्ष्मी श्री विष्णु के साथ पृथ्वी भ्रमण करते हैं इसलिए दीप जलाई जाती है ताकि उन्हें रात में भ्रमण करने में कोई समस्या न हो| देव दीपावली के दिन बनारस में जैसे सारे घाटों और घर को दीप से सजाई जाती है उसी तरह नारियल तेल की दीपक से सारे घर सजाई जाती है तमिलनाडु में और तेलुगुभाषी प्रदेश में भी| धूप और दीप से लक्ष्मी नारयण की आरती भी होती है| कहते हैं मीनाक्षी अम्मा मंदिर में भी इस दिन विशेष आरती होती है| दक्...

कार्तिक पूर्णिमा में कैसे करें श्री लक्ष्मी दामोदर की आरती [Kartik Purnima me Lakshmi-Damodar puja]

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बहुत से जगह पर रास  पूर्णिमा यानि कार्तिक पूर्णिमा में लक्ष्मी पूजन या कई पर की जाती है श्री सत्य नारायण कथा| रास पुरनी माँ दिन वैसे तो अगर आप पूजा न भी करें तो घर पे आरती करना बहुत ही सुबह और पॉजिटिव ऊर्जा देनेवाले हैं| इस दिन सुबह सुबह जरूर उठे और उगते हुए सूरज के साथ साथ अपने इष्ट भगवान की मंगल आरती करें साथ पुरे घर पे आरती की धूप दिखाय| कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहुत से पूजा के मध्य में सबसे अच्छी और सही पूजा मानी जाती हैं लक्ष्मी जनार्दन की पूजा| यह पूजा करने के लिए कोई भी विशेष विधि की जरुरत नहीं होती है पंच उपचार के साथ ही आप यह पूजा कर सकते हैं| साथ में आरती जरूर करें| सुबह के समय पूजा कर रहे हैं तो केवल एक धुनुची धूप जलाय और अगर संध्या के समय आरती और धूप अर्चन कर रहे हैं तो दो धुनुची जलाय| अगर शुद्ध घी मिले तभी आप पंचप्रदीप में घी के बत्ती जलाय वरना तिल या सरसो के तेल से ही बत्ती बनाय| अगर आप दोपहर में विशेष भोग न भी बना पाए तो नारियल का भोग लगा सकते हैं या गुड़ के साथ नारियल लड्डू बनाकर भी इसे चढ़ा सकते हैं| बतासा और अगर हलवा आप चढ़ा पाये तो भी बहुत ही अच्छा होता है| पिने क...

पंचोपचार पूजा

 पंचोपचार पूजा क्या है? [ Worship with five items ]... : कई सारे उपचार से भगवान के पूजा किया जा सकता है जिस में पंचोपचार, सप्तोपचार, दशोपचार, द्वादशोपचार, षोड़शोपचार प्रधान है|  घर पे ऍम जब साधारण पूजा करते हैं या रोज की जो पूजा करते हैं उसमें पंचोपचार या सप्तोपचार में ही पूजा करते हैं|

कब करें तुलसी विवाह कलश विसर्जन [Tulsi Vivah Visarjan]

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वैसे तो तुलसी विवाह में बहुत से लोग पूर्णिमा तक ही पाटा रखते हैं पर आजकल बहुत से लोग दो दिन तक यानि द्वादशी तक ही यह रखते हैं और फिर कलश को विसर्जन कर देते हैं| पर सबसे कच्चा यही होता हैं की आप पूर्णिमा तक रखे और उस दिन पूजा आरती करने के बाद ही दूसरे दिन विसर्जन कर दे| इस दौरान बहुत कुछ करने की जरुरत नहीं होती है बस सुबह और शाम के समय आरती करना जरुरी है| धूप और दीप जलाय और आरती करें| अगर आप रोज की तुलसी पूजा इस दौरान करना चाहे तो आप विवाह पाटे में ही पूजा कर सकते हैं| नारायण को चन्दन सहित तुलसी अर्पण करना भी बिलकुल न भूले| पुरनी माँ के दिन बहुत से लोग सत्यनारायण कथा भी रखते हैं तुलसी विवाह के बाद पर कहें तो रखे सकते हैं या फिर केवल नारायण पूजा भी कर सकते हैं| कुछ लोग अलग से इस दिन राधा कृष्ण या लक्ष्मी नारायण की पूजा भी करते हैं| श्री नारायण के पूजा में प्रत्यक्ष रूप से कोरे अक्षत नहीं चढ़ाने चाहिए पर अगर आप लक्ष्मी नारायण की पूजा रहे हैं तो आप पुष्पांजलि में अक्षत चढ़ सकते हैं| पर शालिग्राम पर या श्री विष्णु के मूर्ति में अक्षत न चढ़ाय केवल कलश पर ही अक्षत चढ़ाय| इस बारे में बहुत से ...

माँ तुलसी की धूप-दीप आरती आराधना [Tulsi Maa Aarti]

सुबह और संध्या के समय धूप और पंचप्रदीप के साथ आरती करते समय अगर यह आरती संगीत करेंगे तो बनेगा एक भक्तिमय बातावरण| नीचे सम्पूर्ण आरती आराधना संगीत-  जय जय तुलसी माता सब जग की सुख दाता, वर दाता| जय जय तुलसी माता|| सब योगो के ऊपर, सब रोगों के ऊपर रुज से रक्षा करके भव त्राता| जय जय तुलसी माता|| बहु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता|  जय जय तुलसी माता|| हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वन्दित पतित जनो की तारिणी, तुम हो विख्याता| जय जय तुलसी माता|| लेकर जन्म विजन में आई दिव्य भवन में मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता| जय जय तुलसी माता|| हरि को तुम अति प्यारी श्यामवरण सुकुमारी प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता| जय जय तुलसी माता||

तुलसी विवाह आरती पूजन कैसे करें [Tulsi Vivah Aarti Puja]

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वैसे तो तुलसी विवाह और कैसे करने होते हैं यह हम सबको थोड़ा बहुत पता ही है पर यहाँ पर हम पूजा के संक्षिप्त विवरण के साथ कैसे श्री शालिग्राम और तुलसी माँ की आरती करते हैं उस बारे में बात करेंगे| वैसे बहुत से लोग का कहना है की पुरुष या महिला क्या दोनों ही तुलसी पूजन कर सकते हैं? इस बारे में हम बाद में क ब्लॉग जरूर बनाएंगे पर आज तुलसी विवाह के मौके पर हम किस तरह आरती करते हैं इस बारे में बात करेंगे| तुलसी पूजन करने के लिए बहुत ज्यादा सामग्री या सामान की जरुरत नहीं होती है बहुत ही काम और घर पे मौजूद सामान से ही आप तुलसी विवाह पूजन आरती कर सकते हैं| बहुत सरे घर पे वैसे तो शालिग्राम जी को रखकर पूजा नहीं की जाती हैं रोज तो उन्हें बिलकुल भी घबराने की जरुरत नहीं है वह श्री नारायण के एक फोटो रख सकते हैं साथ ही नारियल सहित कलश स्थापना करके भी विधि को सम्पूर्ण किया जा सकता है| बहुत से जगह पर सुपारी से भी यह विधि की जाती है पर अगर कलश पे श्री हरि का ध्यान करके यह विधि संपन्न की जाये तो सबसे अच्छा रहता है| तुलसी विवाह के लिए तुलसी माँ के गमले, नारायण के चित्र या शालिग्राम जो आपके पास उपलब्ध हो और...

रानी रासमणि परिवार में जगद्धात्री पूजा [Rani Rashmoni Famly Jagadhatri Puja]

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दक्षिणेश्वर काली मंदिर के साथ रानी रासमणि के नाम इतिहास के पन्नो में स्वर्णक्षर में दर्ज हो चूका है| पर रानी रासमणि के शत्कि उपसना उन्होंने अपने परिवार से ही शुरू की थी जिसके प्रमाण आज भी उनके परिवार में मनाई जानेवाली दुर्गापूजा और जगद्धात्री पूजा में दिखाई देती है| रानी रासमणि और उसके पति राजा राजचन्द्र दास ने पूजा को पारिवारिक रूप में आयोजन करते हुए भी सबके लिए अपने घर के दरवाजे खोल दिए थे| इसलिए आज भी आरती देखने के लिए और पुष्पांजलि देने के लिए बहुत से लोग रानी रासमणि परिवार के दुर्गादालान में उपस्थित होते हैं|  जगद्धात्री पूजा भी सम्पूर्ण शाक्त विधि अनुसार पालन किये जाते हैं| तीन भाग में यह पूजा अनुस्थित होती है पहले भाग को सप्तमी पूजा मानकर सम्पूर्ण की जाती है और फिर आरती के साथ सम्पूर्ण होती है दूसरे भाग को अष्टमी मानकर की जाती है इस दौरान भी आरती पुष्पांजलि से पूजा सम्पूर्ण होती है| इसके बाद होती है नवमी पूजा और कुमारी पूजा भी| नवमी के पूजा के समाप्ति में भी आरती की जाती है | संध्या के समय धूप अर्चन के साथ माँ की संध्या आरती की जाती है| रानी रासमणि परिवार में माँ जगद्धा...

कैसे करें संक्षिप्त जगद्धात्री धूप पूजन [Maa Jagaddhatri Dhoop Puja]

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वैसे तो जगद्धात्री पूजा एक महा पूजा है और इसे कई तरह के विधि विधान के साथ ही संपन्न किया जाता है पर अगर आप घर पे माँ जगद्धात्री की पूजा करना चाहे तो किस सहज पद्धति से कर सकते हैं यह हम आपको यहाँ बताने जा रहे हैं| पहले इस बात को ध्यान में रखे कि अगर आप घर पे संक्षिप्त पूजा या धूप पूजा कर रहे हैं तो मूर्ति नहीं छवि में ही पूजा आरती सम्पन्न करें| पूजा के सामग्री में पुष्प, रक्त और श्वेत चन्दन, बिल्वपत्र, धूप, दीप, आरती के लिए धुनुची और पंचप्रदीप तथा आचमन के लिए आचमन पात्र और आचमनी ले साथ में अगर माँ को भोग चढ़ाना कहते हैं तो अपने मन पसंद भोग अपने पूजा में जरूर रखे| भोग या अलग से कोई नैवेद्य आप न भी चढ़ा पाए तो आप नारियल प्रसाद के रूप में चढ़ा सकते हैं|  सबसे पहले पूजा के सरे सामग्री ठीक से सजा ले और पुष्प पात्र में चन्दन, बिल्वपत्र, अक्षत, चन्दन रखले याद रखे जगद्धात्री पूजा में दूर्वा नहीं चढाई जाती है| माँ के सामने कलश स्थाप करें और दोनों तरफ घी के दीपक जलाकर रखे साथ ही दो पीतल के धुनुची में धूप भी जला दे| अब पांच उपचार से पूजा करें और फिर धूप दीप से संक्षिप्त आरती करें इसके बाद पु...

बंगाल में क्यों मनाई जाती है जगद्धात्रीपूजा [Jagaddhatri Puja 2018]

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बहुत से लोग नहीं जानते की बंगाल में दुर्गापूजा के एक महीने बाद ही फिरसे दुर्गापूजा मनाई जाती है तो जगद्धात्री पूजा के नाम से प्रसिद्ध है| कहते हैं जो लोग पांच दिन तक दुर्गापूजा नहीं कर पाते हैं वह अगर दो दिन की जगद्धात्री पूजा ही कर ले तो उन्हें सम्पूर्ण दुर्गापूजा करने का फल मिल जाता हैं| यह पूजा नवमी के दिन की जाती है जो सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक तीन प्रहार मन कर पूजा करनी होती है साथ ही 108 दीपक जलाकर संधिपूजा भी की जाती है और साथ में धुनुची में  जलाकर धूप पूजा भी करनी होती है| कुछ लोग जगद्धात्री पूजा को दुर्गापूजा के तरह ही पांच दिन मनाते हैं और कुछ जगह पर अष्टमी और नवमी दोनों तिथिको लेकर यह पूजा की जाती है पर साधारण रूप से यह एक दिन यानि अक्षय नवमी या दुर्गानवमी यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी के दिन ही सम्पूर्ण विधि से की जाती है| यह पूजा माँ की दुर्गा रूप की ही पूजा है इसलिए इसमें लगनेवाले पूजा सामग्री भी सम्पूर्ण दुर्गापूजा सामग्री की ही सामान है| जगद्धात्री पूजा में सुबह सात्विक रूप से, मध्यान्ह में राजसिक रूप से और दोपहर के बाद तामसिक रूप में पूजा की जाती है, तामसि...

पूजा-आरती में किस चीज को कहा रखे यह जान ले [ Puja aur Aarti ke chijo ko kis tarha rakhe]

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वैसे तो हम रोज पूजा और आरती करते हैं पर हममें से ज्यादातर लोगों को ही यह नहीं पता होता हैं की आरती और पूजा के किस पत्र को कहा रखना चाहिए| इसलिए आज हम आपसे इसी बारे में बात करेंगे कि पूजा के लिए किस चीज को कहा पर रखे या फिर अगर आप केवल आरती भी कर रहे हैं तो भी धूप और दीप कहा रखे इस बारे में बहुत से लोग नहीं जानते हैं| आइये इस विषय के बारे में ही कुछ बातें हम जान ले| अगर आप पूजा में घी के दीपक जलाते हैं तो उसे भगवन के दाईं तरफ ही रखिये पर अगर आप दीपाक तेल से जला रहे हैं तो उसे बाईं तरफ रखे अगर आप आरती के लिए भी दीपक निवेदन कर रहें हो तो भी इसी तरह से ही दीपक रखकर निवेदन करें| पूजा के लिए या फिर आरती लिए जब भी आप धूप जलाय यानि धूपपात्र धुनुची में धूप जलाय तो हमेशा उसे भगवन के बाईं तरफ रखकर ही जलाय कभी भी दाईं तरफ रख कर ना जलाय| अगर आप दो धुनुची देते हैं तो आप बाईं तरफ के धुनुची से ही आरती करें| सुगन्धित जल से भरा पात्र या जलपात्र बाईं तरफ ही रखे| घंटा और जलशंख बाईं तरफ ही रखे| केसर, कपूर के साथ चन्दन घिस कर उसे भगवन के सामने ही रखें पर चन्दन कभी भी ताम्बे की पात्र में न रखे| भगवन को ...

सुबह बनारस - बनारस और सुबह की आरती [Assi Ghat Ganga Aarti]

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बनारस की अगर बात करें तो वह आरती के बिना अधूरा है| कहते हैं आरती और बनारस एक दूसरे के अभिन्न अंग है| वैसे अगर बनारस की आरती के बारे में बात की जाये तो हमे संध्या समय की आरतीवाले छवि ही सबसे पहले मन में आ जाती है पर बनारस में केवल संध्या आरती ही नहीं बल्कि सुबह के मंगल आरती भी धीरे धीरे लोकप्रिय होता जा रहा है| वैसे बनारस की अपनी भाषा में इसे सुबह-बनारस कहते हैं| अगर आप बनारस की संध्या आरती की साक्षी रहे हैं तो आपको एकबार बनारस की भोरकालीन आरती को भी साक्षात करना चाहिए| आज बनारस की हर घाट में ही आरती होती है पर दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती सबसे प्रसिद्ध है बहुत सरे लोगों सईद यह जानकारी नहीं रखते हैं कि दशाश्वमेध घाट पर सुबह भी एक आरती होती है| एक पुरोहित इस आरती को करते हैं इस लिए इसे एक आरती कहते हैं| सुबह की सबसे सुन्दर और मनोरम गंगा आरती अस्सी घाट पर अनुष्ठित होती है| सप्त पुरोहित मिलके सुबह की आरती करते हैं| पहले धुनुची धूप से धूप आरती की जाती है शंख नाड के साथ इस धूप आरती से ही आरती शुरू की जाती है और इसके बाद एक के कर आरती दीपक, कर्पूर, शंखजल, वस्त्र, पुष्प, मोर पंख के पंखा और ...

दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट पर माँ अन्नपूर्णा की आरती [Annakut Utsav 2018]

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दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट महोत्सव मनाई जाती है और माता अन्नपूर्णा की पूजा करके इसदिन सबमें आमान्न बितरित की जाती है| यह पूजा बहुत ही साधारण तरीके से की जाती है और किसी भी प्रकार की कोई आडम्बर यहाँ नहीं होती है| पूजा करने के लिए माँ अन्नपूर्णा के एक तस्वीर ले ले और साथ में धूप, दीप, अक्षत, पुष्प, चन्दन और कच्चे चावल के साथ अनाज ले ले| एक पाटा लेकर उसमें लाल कपड़ा बिछाकर माँ की मूर्ति को रखे और अक्षत, चन्दन और पुष्प से "ॐ ह्रीं भगवती माहेश्वरी अन्नपूर्णा देव्यै नमः" अर्पण करें| धूप और दीप प्रज्वलित करके माँ को निवेदन करें और चावल अनाज निवेदन करें| और पुष्पांजलि प्रदान करें| इसके बाद धूप और पंचप्रदीप जलाकर माँ की आरती करें| आरती के बाद माँ को  प्रणाम करें और सबको प्रसादी आरती दे| इसके बाद सबमें आमान्न जो माँ को चढ़ाया गया है उसके चावल सबमें बांट दे और अपने घर के भंडार घर पे भी रखे| बहुत से लोग इससे खिचड़ी बनाकर सबको खिलाते हैं जो अगर आप चाहे तो आप भी कर सकते हैं पर सबसे पहले अपने भंडार घर पे इस चावल को थोड़ा जरूर रखे| यह पूजा संध्या के समय करना सबसे अच्छा होता है पर अगर आप चा...

दीपावली पर कैसे करें माँ लक्ष्मी की आरती पूजन [Diwali MahaLakshmi Aarti]

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दीवाली के लिए हम साल भर प्रतीक्षा करते हैं और सोचते हैं की हम इस दिवाली क्या करे और क्या न करे| पर सबसे ज्यादा हम चिंता होती हैं की हम पूजा और आरती कैसे करें माँ लक्ष्मी की क्यों के यही दिवाली की सबसे सुन्दर पल होता हैं जब हम सब मिलके माँ की आरती करते हैं| दीपावली के पूजा को लेकर वैसे तो कई सारे विडिओ और पूजा हमारे यहाँ मौजूद है पर आरती को लेकर अलग से कोई लेख मुझे दिखाई नहीं दिए इसलिए में यहाँ पर आप सभी को दिवाली आरती के बारे में कुछ बात बताना चाहूंगा| वैसे तो लक्ष्मी पूजन में कलश स्थापन करके अपने परिवार के नियम और परंपरा अनुसार लक्ष्मी गणेश या लक्ष्मी  नारायण की पूजा कर सकते हैं पर जहा तक मेरी जानकारी है अगर आप दुकान या दफ्तर में पूजा करते हैं तो लक्ष्मी-गणेश की पूजा करें और अगर आप घर पे माँ लक्ष्मी की आराधना करते हैं तो श्रीनारायण के साथ पूजा करें| माँ लक्ष्मी को केवल खली पूजन कभी नहीं करना चाहिए| तो आप कलश स्थापन करके पांच उपचार यानि गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप से पूजा करें और मन चाहा भोग भी लगाय| भोग लगाने के बाद अब आती है पुष्पांजलि और आरती की बारी| आरती करने से पहले दो...

दीपावली पर माँ काली की धूना आरती [Maa kali ki Aarti]

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दीपावली पर वैसे तो माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है पर इस दिन मध्य रात्रि में यानि अमावस्या तिथि की मध्य रात्रि में काली माँ की पूजा भी की जाती है जिससे किसी भी प्रकार के कोई बुरी दोष से आप तिजत प् सकते हैं| हर किसी के लिए अपने घर पे कालीपूजा करना संभव नहीं होता हैं और नहीं सबके घर के आसपास कालीबाड़ी या कालीमंदिर होती है| पर अगर आप फिर भी माँ काली की पूजा करना कहते हैं तो आपको निराश होने की जरुरत नहीं है यहाँ हम आपको सरल पूजा के बारे में बताते हैं| इसके लिए आपके घर पे माँ की फोटो होना बहुत जरुरी है साथ ही पीतल के धुनुची, मिटटी के एक दिया और पंचप्रदीप| ध्यान में रखे की माँ की मूर्ति नहीं काली माँ की फोटो ही लेना चाहिए क्यों के काली माँ की मूर्ति की पूजा के लिए कुछ विशेष विधि होती है इसलिए आप एक फोटो ही ले| बहुत अकह होगा अगर आप दक्षिणेश्वर माँ काली की फोटो रखेंगे लो आजकल इंटरनेट पे भी मिल जाता है आसानी से| माँ को धूना पूजा करने के लिए सबसे पहले एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माँ की फोटो रख ले और फिर सिंदूर रक्त चन्दन का तिलक करे फिर जवाकुसुम के फूल अर्पण करें या कोई लाल फूल जो उपलब्ध हो उस...

दीपावली पर आरती करे या न करे? [Diwali par Aarti]

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बहुत सारे लोगों का कहना है कि क्या हम दीपावली पर माँ लक्ष्मी कि आरती करे या न करें? क्यूंकि बहुत से लोग कहते है कि आरती करने का मतलब होता है माँ लक्ष्मी को जाने को कहना| पर आपको एक बात सबसे पहले बता दे कि आरती से कोई आने जाने का सम्बन्ध बिलकुल भी नहीं है| आरती करने का मतलब होता है भगवान को प्रेम से धूप-दीप दिखाना या उनके सम्मान करना| अगर आप कोई भी पूजा करते है पर आप आरती नहीं करते है उसके आखिर में तो वह पूजा असम्पूर्ण मानी जाती है| वैसे तो आरती  एक स्वंय सम्पूर्ण पूजा है पर यह पूजा के लिए भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण आचार है| इसलिए किसी भी पूजा से पहले संक्षिप्त यानि धूप और दीप से और पूजा के अंत में धूप-दीप-शंखजल-पुष्प-चंवर से यानि पंच आरात्रिक पद्धति से आरती करनी चाहिए| और हम नवरात्रि और गणेश पूजन में भी नौ दिन या दस दिन तक माता को या बाप्पा को घर पे रखके आरती करते हैं यानि सेवा करते हैं| अगर आरती करने से भगवान चले ही जाते तो इन पूजा उत्सव में भी हम आरती नहीं करते| हम अपने भगवान को अपना प्रेम देना कहते हैं उनकी सेवा करना कहते हैं आरती एक सम्पूर्ण सेवा हैं और एक विशेष सेवा भी| अगर आ...

क्या दीपावली पर नई मूर्ति और फोटो रखना जरुरी है? [Deepawali par nai murti or photo]

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अगर आप रोज लक्ष्मी नारायण या लक्ष्मी गणेश की पूजा करते हैं किसी फोटो या पीतल के मूर्ति में तो आपको इसे बदल ने की जरुरत बिलकुल भी नहीं है| पर अगर आप मिटटी की मूर्ति में हर साल पूजा करते हैं तो उसे बदल कर नया मूर्ति जरूर रखे| असल में मूर्ति अगर मिटटी से बानी है तो बहुत ही जल्द ख़राब हो जाती है मतलब एक्सल तक तो ठीक हैं पर अगर आप उससे ज्यादा समय तक उस मूर्ति को रखेंगे तो वह खराप हो जाता हैं और रंग भी फीका हो जाता है| हम भगवान के मूर्ति और फोटो इस लिए रखते हैं क्यों के इससे हम उनके साक्षात दर्शन करना चाहते हैं पर अगर वह मूर्ति ही ख़राब हो जाये तो सोचिये कैसे लगेगा, इसलिए मिटटी की मूर्ति को हर साल बदल जरूर दे और नई मूर्ति घर पे लेकर ही पूजा आरती करें और प्रतिष्ठित करें| अगर आप पीतल या धातु के मूर्ति में ही पूजा आरती करते हैं तो उसे अच्छे से पंचामृत से स्नान करवाके फिर उसकी पूजा करें| अगर आप फोटो में भी पूजा करते हैं तो भी आप फोटो को अच्छे से साफ कर ले और हो सके तो चन्दन के जल से उसे पोछ ले फिर उसे दोबारा मंदिर में या  पटा में बैठा कर ही पूजा और आरती करें| बहुत से लोग दीपावली के लिए धा...

धनतेरस पर क्या ख़रीदे और क्या नहीं [Dhanteras par kya kharide aur kya nahi]

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इस साल धनतेरस पर अगर आप कुछ धातु के बस्तु खरीदना चाहते हैं तो आपको यह समझना होगा की आपको क्या खरीदना है और क्या नहीं खरीदना है| धातु से हमारे घर और जीवन के का तरह सकारात्मक सोच का विस्तार होता है पर वही कुछ गलत धातु खरीद ने से नकारात्मकता भी होती है| हम इन्ही चीजी को शगुन और अपशगुन के साथ जोड़ देते हैं पर अगर देखा जाए तो यह शगुन अपशगुन नहीं बल्कि सकारात्मकता और नकारात्मकता की बात हैं| ज्यादातर लोग धनतेरस के दिन सोना या चांदी खरीद ते हैं| पर क्या आप जानते हैं की धनतेरस के दिन सोना और चांदी से भी ज्यादा पीतल खरीदना बहुत ही शुभ मन जाता है| कहते हैं भगवान धन्वंतरि जब अमृत पात्र लेकर आए थे तो पीतल के पात्र में अमृत लेकर आए थे| इस लिए पीतल के बर्तन को लक्ष्मी की प्रतीक मानी जाती है और साथ ही सेहत के लिए भी पीतल धातु बहुत ही अच्छी होती हैं| इसलिए पूजा के पात्र भी सबसे अच्छे पीतल ही मानी जाती है| इसलिए इस धनतेरस पर आप कहें बहुत कीमती धातु क्यों न ख़रीदे पर पीतल के कुछ बर्तन जरूर ख़रीदे| यहाँ पर यद् रखे कि आरती करने के लिए कभी भी कोई स्टील या दूसरे बर्तन इस्तेमाल न करें पीतल के धूप और दीप पात...